पृष्ठ:दासबोध.pdf/५३६

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28 दासबोध। [ दशक १८ अपनी ओर ले लेते हैं। वे कहते हैं कि, हम तो भाई मूर्ख, निरक्षर हैं, कुछ नहीं जानते ॥ ३३ ॥ जो परमात्मा को अपने से बड़ा समझता है वह संसार के सब लोगों को सन्तुष्ट रखता है; क्योंकि सम्पूर्ण संसार में परमात्मा भरा हुआ है ॥ ३४ ॥ यदि सभा में कलह उठती है तो लोग ज्ञाता ही को दोष देते हैं। (वे कहते हैं कि), लोगों का मन नहीं रख सकता यह कैसा योगी है ? ।। ३५ ।। वैर करने से वैर ही बढ़ता है, अपने को दुःख सहना पड़ता है । इस लिए चतुर पुरुष के गूढ़ विचार मालूम होने चाहिए ॥ ३६॥ उत्तम पुरुप सदा सम्हल सम्हल कर चलते हैं; अपने ऊपर किसी प्रकार का दोष नहीं आने देते । वे क्षमा और शान्ति का व्यवहार अवश्य करते हैं ॥३७॥ अवगुणी के अवगुण गुणी पुरुष तुरन्त जान लेते हैं । विवेकी पुरुष अपने सब काम विवेक से करते ॥३८॥ जो विवेक-बल से अनेक प्रकार के उपाय और दीर्घ प्रयत्न करता रहता है उसकी महिमा वहीं जान सकता है ।। ३६ ॥ जिसके । पास विवेक नहीं होता उसे दुर्जन लोग फाँस लेते हैं और बेवकूफ लोग भी उसे स्खूब ही बना लेते हैं ! ॥४०॥न्याय, 'पर्याय' और उपाय की अनेक युक्तियां मूर्ख को कैसे मालूम हो सकती हैं ? ॥ ४१ ।। परन्तु उस बिगड़े हुए रंग को भी चतुर पुरुष फिर ठीक कर लेते हैं । वे स्वयं आत्मयज्ञ करते हैं और दूसरे से कराते हैं, तथा स्वयं प्रयत्न करते हैं और दूसरे से कराते हैं ॥ ४२ ॥ यों तो जगत् में तमाम मनुष्य ही मनुष्य भरे पड़े हैं; परन्तु उनमें सिर्फ वही सजन धन्य हैं कि, जिनके कारण मनुष्य मात्र को समाधान मिले ॥ ४३ ॥ ऐसा सजन पुरुष लोगों की इच्छाओं को नाना प्रकार से परखता मान, प्रसंग, समय जानता है और सन्तप्त लोगों को अनेक भांति से शान्त करना जानता है । ४४ ॥ इसी प्रकार वह सम्पूर्ण संसार की बातें जानता है; वह विवेक से सब कुछ करने से समर्थ होता है । वह कैसे क्या करता है, सो कुछ लोगों को मालूम ही नहीं होता! ॥ ४५ ॥ " बहुत लोगों को कार्य में लगाये रहता है, नाना मंडलों ( समुदायों ) की हलवल अपने हाथ में रखता है " ऐसा ही पुरुन विवेक से समर्थ* की पदवी पाता है॥४६॥परन्तु विवेक एकान्त में

  • इस पद्य को श्रीसमर्थ रामदास स्वामी का आत्मचरित ही समझना चाहिए।