पृष्ठ:दासबोध.pdf/५३८

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उन्नीसवाँ दशक । पहला समास-लेखन-कौशल। ॥ श्रीराम ।। ब्राह्मणों को बालबोध (नागरी) अक्षरों का अभ्यास करके उन्हें इस प्रकार सुन्दर लिखना चाहिए कि, उनको देख कर ही चतुर पुरुपों को सन्तोष हो ॥१॥ गोल, सरल, अलग अलग, चटकीली स्याही से, मुक्कामाला की तरह, अक्षरों को पंक्तियां लिखना चाहिए ॥ २॥ प्रत्येक अक्षर स्पष्ट होना चाहिए; बीच की जगह, कानामात्रा, रेफ, बेलांटी, इत्यादि, अक्षर के सम्पूर्ण अंग, ठीक होने चाहिए ॥ ३ ॥ पहला अक्षर जैसा हो वैसे ही सम्पूर्ण ग्रन्थ के अक्षर हो-'अथ' से 'इति' तक ग्रन्थ एक ही 'टाँक' से लिखा हुआ जान पड़ता हो! ॥४॥ अक्षरों का कालापन, टाँक की मुटाई तथा मोड़ इत्यादि सब बराबर होना चाहिए ॥ ५॥ पंक्ति में पंजिन भिड़ जाना चाहिए; मात्रा, रेफ और बिन्दु' इत्यादि एक में न मिल जाना चाहिए; तथा ऐसे लम्बे अक्षर न लिखना चाहिए कि, एक दूसरे से जा लगे ॥ ६ ॥ कागज के पत्रों पर शीश से लकीरें खींच कर ठीक ठीक लिखना चाहिए। पंक्तियों का अन्तर पास-दूर न होना चाहिए-बरावर बरावर होना चाहिए ॥ ७ ॥ इस प्रकार लिखना चाहिए कि फिर लिखे हुए को शोधने की आवश्यकता न हो, भूल ढूँढ़ने पर भी न मिले; और न लेखक से फिर कोई बात पूछनी पड़े ॥ ८॥ नूतन वयवाले (बालक) को सम्हाल सम्हाल कर लिखना चाहिए ताकि उसकी लिखावट को देख कर सब लोग मोह जायें ॥ ६ ॥ बहुत से लोग युवावस्था में बहुत बारीक अक्षर लिख देते हैं; पर बुढ़ापे में वे अपना ही लिखा नहीं पढ़ सकते; अतएव न बहुत बारीक और न बहुत मोटे-किन्तु मध्यम दरजे के अक्षर लिखना चाहिए ॥ १०॥ पत्र के आस- पास जगह (हाशिया) छोड़ देना चाहिए; और बीच में सुन्दर तथा स्पष्ट लिखना चाहिए; कागज चाहे घिसते घिसते घिस जाय; पर अक्षर वैसे ही रहना चाहिए ॥ ११ ॥ इस प्रकार ग्रन्थ बना बना कर लिखना चाहिए कि, जिसे देख कर मनुष्यमात्र को वैसा ही लिखने की इच्छा हो और लोग यह कहने लगें कि, “भाई इस लेखक को देखना चाहिए" ॥ १२ ॥ शरीर से खूव परिश्रम करना चाहिए; अपनी उत्कट कीर्ति