पृष्ठ:दासबोध.pdf/५४०

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-- ४६२ दासबोध । [ दशक १९ बात समझनी चाहिए । यही सुख्य चातुर्य के लक्षण हैं ॥ ६॥ चतुरता के बिना कोई प्रयत्न काम नहीं दे सकता; चातुर्य के विना सारी विद्या व्यर्थ है । विना चतुरता के समाजों में बड़ी कठिनाई ा पड़ती है- लोगों का समाधान ही नहीं होता ॥ ७॥ दूसरे की बहुत बातें चुपके सुनते रहना चाहिए; स्वयं कुछ न बोलना चाहिए। परन्तु सब के मन का भाव, अपनी चतुराई से, थोड़े ही में समझ लेना चाहिए ॥८॥ बेवकृफों में बैठना न चाहिए, उद्धट मनुष्य से बहुत वात न करना चाहिए और अपने लिये किसीका समाधान भंग न करना चाहिए ॥६॥ अनजानपन (दीनता) छोड़ना न चाहिए, जानपन से फूलना (गर्व करना) न चाहिए और सब लोगों का हृदय मृदु शब्दों से प्रसन्न रखना चाहिए ॥ १० ॥ प्रसंग अच्छी तरह परखना चाहिए, बहुतों की अप्रसन्नता न लेनी चाहिए, सत्य कह कर भी सभा का मनोभंग न करना चाहिए ॥ ११॥ पता लगाने में आलस्य न करना चाहिए, भ्रष्ट लोगों में बैठना न चाहिए । और यदि बैठे तो मिथ्या दोप न कहना चाहिए ॥ १२ ॥ आर्त मनुष्य का अंतर (अन्तःकरण) परखना चाहिए। पढ़े चाहे थोड़ा ही, पर समझना बहुत चाहिए । भले श्रादसी को अपने गुणों से मोह लेना चाहिए ॥ १३ ॥ मजलिस में न बैठना चाहिए, भोजन-प्रसंग में न जाना चाहिए। क्योंकि वहां जाने से अपनी हीनता होती है ॥ १४ ॥ उत्तम गुण प्रकट करते हुए सब से बोलने में श्रानन्द आता है। भले श्रादमी देख कर अच्छी तरह खोज कर तब उन्हें अपना मित्र बनाना चाहिए ॥ १५ ॥ उपासना के अनुसार बोलना चाहिए, सब लोगों को संतुष्ट रखना चाहिए और सब की सब प्रकार से प्रतिष्ठा रखना चाहिए ॥ १६ ॥ पहले जगह जगह सब बातों का पता लगा कर तब ग्राम में प्रवेश करना चाहिए और मनुष्यमात्र से भाई का सा प्रेम रख कर बोलना चाहिए ॥ १७ ॥ ऊंचा नीचा किसी को न कहना चाहिए, सब का हृदय शीतल करना चाहिए । सूर्यास्त के समय कहीं न जाना चाहिए ॥ १८॥ मनुष्य में वाणी एक ऐसी चीज है कि जिसके कारण संसार मित्र बन सकता है। सर्वत्र सत्पात्र पुरुषों को खोजना चाहिए ॥१६॥जहां कथा-वार्ता होती हो वहां जाना चाहिए से दीन की तरह, बैठना चाहिए तथा वहीं से उसका सब अभिप्राय जान लेना चाहिए ॥ २० ॥ वहां सजन पुरुष मिलते हैं; बड़े बड़े प्रभावशाली लोग भी मालूम हो जाते हैं । इस प्रकार सन जान बूझ कर, तब, धीरे धीरे उनमें मिलने का प्रयत्न करना चाहिए और सब .