पृष्ठ:दासबोध.pdf/५४१

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समास३] अभागी के लक्षण । ॥ २१ ॥ सब में श्रेष्ठ श्रवण है, श्रवण से भी बड़ा मनन है । सनन से बहुत लोगों का समाधान होता है ॥ २२ ॥ धूर्तता (विशिष्ट चातुर्य) के साथ सब जान लेना चाहिए, भीतर ही भीतर मन में सब कुछ खचित कर लेना चाहिए । बिना समझे तकलीफ क्यों उठाना चाहिए? ॥ २३ ॥ तीसरा समास-अभागी के लक्षण । ॥ श्रीराम ॥ अन्तःकरण सुचित्त करके अभागी के लक्षण सुनो । इन्हें त्यागने से भाग्यवान् के लक्षण आ जाते हैं ॥ १ ॥ पाप से दरिद्र मिलता है, दरिद से पाप संचित होता है-सदा ऐसा ही हुआ करता है ॥ २॥ इस कारण श्रभागी के लक्षण सुन कर उनका त्याग ही करना चाहिए। ऐसा करने ले कुछ भाग्यवान् के लक्षण प्राप्त होते हैं ॥३॥ अभागी को बालस अच्छा लगता है, यत्न कभी नहीं सुहाता और उसकी वासना सदा अधर्म में लगी रहती है॥ ॥ वह सदा भ्रमिष्ट और उसनींदा रहता है, यो ही अट्ट-सट्ट बोलता है जो किसीको पसन्द नहीं आता ॥ ५॥ वह लिखना-पढ़ना नहीं जानता, सौदा-सुल्प नहीं कर सकता, हिसाब- किताब नहीं रख सकता और उसमें धारणाशक्ति भी नहीं होती ॥१६॥ वह खोता है, छोड़ता है, गिराता है, फोड़ता है, भूलता है, चूकता है; उसमें नाना अवगुण होते हैं। उसे भले की संगति कभी नहीं अच्छी लगती ॥ ७ ॥ बदमाश साथी जोड़ता है, कुकर्मी मित्र बनाता है, चोर पापी और नटखटों को इकट्ठा करता है ॥ ८॥ जिससे देखो उसीसे कलह करता है, सदा चोरी करता है, परघात करने में बड़ा प्रवीण होता है, रास्ते में लूटता है ॥ ६ ॥ उसमें दूरदर्शिता नहीं होती, उसे न्याय, नीति नहीं रुचती और सदा दूसरे की वस्तु लेने की अभिलापा रखता है ॥ १०॥ आलस से कुछ दिन शरीर पलता है, परन्तु पेट को जव नहीं होता तब काम नहीं चलता, पहरने ओढ़ने को चीथड़े भी नहीं मिलते ॥ ११ ॥ आलस से देह पोसता है, सदा कोख खुजलाता है और दिनरात सोया करता है! ॥ १२॥ लोगों से मित्रता नहीं करता, कठोर वचन बोलता है और मूर्खता के कारण किसीका रोका नहीं मानता ॥१३॥ पवित्र लोगों से मिलने में संकोच करता है, मैले-कुचैले लोगों में निशंक दौड़ कर जाता है, और जिस बात की लोग निन्दा करते हैं