पृष्ठ:दासबोध.pdf/५४४

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दासबोध। [दशक १९ प्रताप से, सार्तण्ड की तरह, उदित रहता है ॥ १५ ॥ जहां जानकार पुरुप होगा वहां कलह कैसे उठ सकती है ? ॥ १६ ॥ भाग्यवान पुरुष सांसारिक सुखों के लिए राजनैतिक दाव-पेंच ( राजकारण ) जानता है और परमार्य प्राप्त करने के लिए अध्यात्म-विवरण जानता है; वह, सब में जो उत्तम गुण हैं, उनका भोत्ता होता है ॥ १७ ॥ उसकी यह चाल कदापि नहीं रहती कि, आगे और कुछ कहता हो तथा पीछे और कुछ रहता हो। उस पुरुष को सब को श्रावश्यकता ही रहती है ॥ १८ ॥ चह ऐसा वर्ताव नहीं करता कि, जिससे किसीके हृदय को चोट पहुँचे, किन्तु वह सब प्रकार से विवेक प्रगट करता है ॥ १६॥ उसके पास से कर्मविधि, उपासनाविधि, ज्ञानविधि, वैराग्यविधि, और विशाल ज्ञातृत्व को बुद्धि दल कैसे सकती है ? ॥ २० ॥ उसके पास उत्तम ही उत्तम गुण होते हैं। फिर उसे बुरा कोई कैसे कह सकता है ? वह आत्मा को तरह सव घटों में सम्पूर्ण व्यापक रहता है ॥ २१ ॥ जिस प्रकार छोटे- बड़े, सब लोग अपने कार्य में तत्पर रहते हैं उसी प्रकार वह मन से सव का उपकार करता रहता है ॥ २२ ॥ दूसरे के दुख से दुखी और दूसरे के सुख से सुखी होकर वह सदा यही इच्छा रखता है कि, सभी सुखी रहे ॥ २३ ॥ छोटे-बड़े, सब लड़कों पर जिस प्रकार पिता का मन एक- समान हो लगा रहता है उसी प्रकार वह महायुरुप सब की बरावर चिता रखता है ॥ २४ ॥ जो किसीका दुख नहीं देख सकता, सदा निस्पृह रहता है, धिक्कारने पर भी बुरा नहीं मानता वही महापुरुष है ॥ २५॥ मिथ्या शरीर को यदि किसीने निन्दा भी को तो इससे उसका क्या गया ? ज्ञाता को कहीं देहवुद्धि जीत सकती है? ॥ २६ ॥ यह नहीं हो सकता; ज्ञाता देह से भिन्न है। अस्तु । कुछ न कुछ उत्तम गुण संसार में दिखाना चाहिए ॥ २७ ॥ उत्तम गुण को और मनुष्य आकर्षित होता है, बुरे गुण से मनुष्य को खेद होता है। मामूली लोग यह तीक्ष्ण बुद्धि की बात स्या जाने ? ॥ २८ ॥ जब लोगों को यह प्रतीति मा जाती है कि, यह लोगों को अत्यन्त क्षमा करता है तब वे लोग उस पुरुष को, नाना प्रकार से, सहायता करते हैं ॥ २६ ॥ बहुत लोग अपने को वड़ा समझते हैं; पर अपने ससझने से क्या हुआ; जब तक कि उसको सब लोग बड़ा न समझे । महापुरुष धीर, उदार और गम्भीर होता है ॥ ३०॥ जितने उत्तम गुण हैं वे सब समर्थ के लक्षण हैं । फिर अवगुणों को अभागी के लक्षण समभाना हो चाहिए॥३१॥