पृष्ठ:दासबोध.pdf/५४५

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समास'१] देह की उपयोगिता। ४६७ पाँचवाँ समास-देह की उपयोगिता । ॥ श्रीराम ॥ मिट्टी, पत्थर, सोना, रूपा, काँला, पीतल, तांबा, आदि अनेक धातुओं के देव और चित्रलेप पूजे जाते हैं ॥ १ ॥ रुई की लकड़ी के देव, प्रवाल (मूंगा) के देव, बाण, तांदले, नर्मदेश्वर, शालिग्राम, काश्मीरी देव, सूर्य- कांत और सोमकान्त भी पूजे जाते हैं ॥२॥ कोई देवतार्चन में ताम्र और वेम के सिक्के पूजते हैं और चक्रांकित चक्रतीर्थ से ले पाते है ॥३॥ उपासना के अनेक भेद है: कहां तक विस्तार किया जाय? अपनी श्रद्धा के अनुसार सभी उपासना करते हैं ॥ ४ ॥ पर पहले उन सब का कारण जो 'स्मरण ' है उसका विचार करना चाहिए । सब देवता उसी के अंश हैं ॥ ५॥ आदि में दृष्टा देव एक ही है। उसीके अनेक हो गये हैं । विवेक से यह बात ध्यान में आ जाती है ॥ ६॥ देह के बिना भनि नहीं हो सकती और न परमेश्वर प्रसन्न हो सकता है। इस लिए भजन का भूल देह ही है ॥ ७॥ यदि देह पहले ही से व्यर्थ मान लिया जाय तो भजन कैसे हो सकता है ? सारांश, देह और आत्मा के ही योग से मजान हो सकता है ॥ ८ ॥ देह के बिना ईश्वर का भजन-पूजन, महो- त्सव, इत्यादि वाते कैसे हो सकती हैं ? ॥ ६॥ अतर, चन्दन, पत्र, पुष्प, फल, तांबूल, धूप, दीप, नैवेद्य, नादि से, देह के बिना, पूजा किस प्रकार हो सकती है ?॥ १०॥ देव का तीर्थ लेना, उसके चन्दन लगाना, उस पर पुष्प चढ़ाना, इत्यादि बातें देह विना कैसे हो सकती हैं ? ॥ ११ ॥ सारांश, देह के बिना कोई काम हो नहीं सकता; देह से ही भजन हो सकता है ॥ १२॥ देव, देवता, भूत, (प्राणिमात्र ) देवत, इत्यादि सब में परमात्मा भरा हुआ है; अतएव योग्यता के अनुसार सब को प्रसन रखना चाहिए ॥ १३ ॥ सब का जो सन्मान किया जाता है वह मूल (परमात्मा) को प्राप्त होता है ॥ १४॥ मायावल्ली छैली हुई है, नाता प्रकार के देहफलों से लदी हुई है, फलों में मूल की चेतना मालूम हो जाती है ॥ १५ ॥ इस लिए उदासीनता न दिखलाना चाहिए । जो देखना हो वह यहीं देख लेना चाहिए और विश्वास हो जाने पर समा- धान से रहना चाहिए ॥१६॥ अनेक प्राणी संसार छोड़ कर देव को ढूँढ़ते फिरते हैं, परन्तु वे जहां जाते हैं वहां नाना प्रकार के संदेहों में पड़ते हैं ॥ १७ ॥ सर्वसाधारण लोगों में से कोई तो घर में ही देवतार्चन करते