पृष्ठ:दासबोध.pdf/५५१

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समास ८] उपाधि-निरूपण। ४७३ आठवाँ समास-उपाधि-निरूपण । 11 श्रीराम ॥ सृष्टि में बहुत प्रकार के लोग हैं; परिभ्रमण करने से सब कौतुक मालूम हो जाता है और नाना प्रकार के विचार मिलने लगते हैं ॥१॥ कितने ही सांसारिक ऐसे मिलते हैं कि, जिन की वृत्ति अखंड रीति से उदासीन रहती है और सुख-दुःख में जिनका समाधान नहीं डिगता ॥ २॥ चे स्वाभाविक ही मित बोलते हैं; निश्चयपूर्वक चलते हैं। उनके बोलने की शैली ऐसी अपूर्व होती है कि, उसे लब मानते हैं ॥३॥ तालज्ञान, रागज्ञान, नीति-न्याय, इत्यादि बातें उन्हें स्वाभाविक ही मालूम होती हैं ॥ ४॥ एक आध ऐसा शूर पुरुष मिल जाता है कि, जिससे सदा सब लोग राजी रहते हैं और जिसके विषय में प्राणिमात्र की प्रीति नित्य नई होती जाती है ॥ ५॥ अकस्मात् बहुत कुछ मिल जाता है, किसी महापुरुष के दर्शन हो जाते हैं और अचानक उसीमें महंत के लद लक्षण जान पड़ने लगते हैं ॥ ६ ॥ ऐसा मनुष्य मिलने पर उसके चमत्कार से गुणग्राहक पुरुष मोह जाते हैं; क्योंकि, उसका श्राचार और उपदेश अनुभवयुक तथा निश्चित होता है ॥ ७॥ अपने अवगुण ही गुण मालम होना सब अवगुणों से श्रेष्ठ अवगुण है। यह बड़ा भारी पाप है-इससे दरिद्रता नहीं मिट सकती ॥ ८॥ बहुत ध्यान- पूर्वक करने से जो काम नहीं होता वह सदा नैसर्गिक रीति से हो जाता है । उसमें दाँव-पेंच की आपदा से काम नहीं पड़ता ॥६॥ किसीको अभ्यास करने से भी नहीं पाता और किसीको सहज ही श्रा जाता है । भगवान् की महिमा कैसी क्या है-सो मालूम नहीं होती ॥१०॥ बड़े बड़े राजनैतिक विषयों में भूल पड़ जाती है, विघ्न उपस्थित होते हैं । इस प्रकार की अनेक भूलो से चारो ओर निन्दा होती है ॥ ११ ॥ अतएव भूलना न चाहिए । इससे सब उपाय ठीक बन जाते हैं। परन्तु भूलने से उपाय भी 'अपाय' (विघ्न ) हो जाते हैं ॥ १२ ॥ क्या भूल हुई, सो मालूम ही नहीं होती, मनुष्य का मन हो नहीं मुकता और अभिमान न छूटने के कारण दोनों लोक में दुर्दशा होती है ॥ १३ ॥ सारी संस्थाएं नाश हो जाती हैं, लोगों के मनं टूट जाते हैं; परन्तु यह मालुम ही नहीं होता कि, युक्ति में भूल कहां होती है ॥१४॥ उद्योग के विना जो कारवार किया जाता है वह सारा बिगड़ते ही जाता है। इसका कारण यही है कि, दूरदर्शिता से उसमें बुद्धि का बंध 1