पृष्ठ:दासबोध.pdf/५५३

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समास ९] राजनीति का व्यवहार । है उसे अखंड रीति से एकांत सेवन करना चाहिए ॥ १॥ क्योंकि एकान्त में तजवीजें मालूम होती हैं अखंड चेप्टाएं. सूझती हैं और प्राणि- मात्र की स्थिति तथा गति मालम हो जाती है ॥२॥ यदि वह चेष्टा ही न करेगा तो कुछ भी न मालूम होगा। हां, जो दिवालिया होता है वह जमा-खर्च अवश्य ही नहीं देखता ॥ ३ ॥ कोई धन-दौलत कमाते हैं और कोई अपने पास का माल भी गवाँ बैठते हैं। ये सव उद्योग की वाते हैं ॥ ४ ॥ मन की बात पहले ही समझ लेने से अनिष्ट होने की सम्भावना नहीं रहती ॥ ५॥ एक स्थान में बहुत रहने से लोग ढिठाई करने लगते हैं-अति परिचय से अवज्ञा होती है-अतएव एक जगह बहुत रह कर विधान्ति न लेते रहना चाहिए ॥ ६॥ आलस से सारा कारबार' डूब जाता है और समुदाय का उद्देश पूरा नहीं होता !!-७॥ अतएव उपासना के अनेक कार्य, नित्यनियम के साथ, लोगों के पीछे लगा देना चाहिए। ऐसा करने से उन्हें अन्य कृत्रिम कामों के करने का मौका ही न मिलेगा ॥ ८ ॥ जान-बूझ कर चोर को भंडारी बनाना चाहिए, परन्तु दोप देखते ही उसे संभालना चाहिए और धीरे धीरे उसकी मूर्खता दूर करनी चाहिए ॥ ६ ॥ ये सारी अनुभव की बातें हैं। किसी प्राणी को दुःख न होने पावे; परन्तु राजनीति से सारे लोगों को फाँस लेना चाहिए ॥ १० ॥ नष्ट पुरुष के लिये नष्ट की योजना कर देनी चाहिए और वाचाल से चाचाल को भिड़ा देना चाहिए; पर अपने ऊपर विकल्प का जाल न आने देना चाहिए ॥ ११ ॥ काँटा से काँटा निकालना चाहिए-निकालना चाहिए; पर मालुम न होने देना चाहिए ! कलहकर्ता की पदवी न आने देना चाहिए ॥ १२ ॥ गुप्त रीति से-किसीको मालूम न होते हुए जो काम किया जाता है वह तत्काल सिद्धि को प्राप्त होता है, गचपच में पड़ने से वही काम विशेप खूबी के साथ नहीं होता ॥ १३ ॥ (किसीका यश) सुन कर ( उसके विपय में ) प्रीति होनी चाहिए; उसे देख कर वह प्रीति और भी दृढ़ होनी चाहिए, तथा अति परिचय होने पर उसकी सेवा करनी चाहिए ॥ १४ ॥ कोई भी काम हो, वह करने से होता है, न करने से पिछल जाता है। इस लिये ढीलेपन से न रहना चाहिए ॥ १५ ॥ जो दूसरे पर विश्वास करता है उसका कारबार डूब जाता है । अतएव, वास्तव में योग्य पुरुष वही है, जो स्वयं कष्ट उठाते हुए, आत्माविश्वास रख कर, अपना काम सम्हालता है ॥१६॥ सब को सब बातें न मालूम होने देना चाहिए, क्योंकि ऐसा होने से उन बातों का महत्व नहीं रहता ॥ १७ ॥ मुख्य सूत्र हाथ में लेना चाहिए, 1