पृष्ठ:दासबोध.pdf/५५४

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दासबोध । [ दशक १ जो कुछ करना हो वह सब जनसमुदाय के द्वारा करवाना चाहिए। छानेक राजनैतिक गूढ़ प्रश्नों को हल करना चाहिए ॥१८॥ वाचाल, पहल- वान और कलहकर्ताओं को भी अपने हाथ में रखना चाहिए। परन्तु ऐसा न हो जाय कि, सारे दुर्जन ही दुर्जन 'राजकारण' में भर जायँ ॥ १६॥ विरोधियों को भेद से पकड़ में लाना चाहिए और उनको रगड़ कर पीस डालना चाहिए; पर फिर पीछे से उन्हें सँभाल लेना चाहिए, बिलकुल नष्ट न कर देना चाहिए ॥ २० ॥ दुष्ट दुर्जनों से डर जाने पर 'राजकारण ' (राजनीति) का महत्व नहीं रहता; किन्तु दुरी भली सव बातें खुल जाती हैं ॥ २१ ॥ मनुष्य-समुदाय तो बहुत बड़ा चाहिए ही परन्तु शाकमणशक्ति भी दृढ़ चाहिए, परन्तु ध्यान में रहे कि, मठ वना कर-ससुदाय एकन करके-फिर अकड़बाजी न करना चाहिए ॥ २२ ॥ दुर्जन प्राणी अपने मन ही मन में जान लेना चाहिए, पर उनके विषय में कुछ प्रकट न करना चाहिए । इसके विरुद्ध, उन्हें महत्त्व देकर सज्जन की तरह उनकी विनती करना चाहिए ! और मौका देख कर अपना पदला लेना चाहिए ॥ २३ ॥ लोगों में दुर्जन के प्रगट हो जाने पर बहुत सी खटखट मचती हैं । इस लिए उस मार्ग ही को नष्ट कर देना चाहिए ॥ २४॥ ऐसा परमार्थ का पक्षपाती-धर्मात्सा-राजा चाहिए कि, शत्रु- सेना को देखते ही रणशूरों की भुजाएं फड़कने लगें ॥ २५ ॥ उसको देखते ही दुर्जनों की छाती दहल उठती है। वह अनुभव के हथकँडे चलाता है और उसके द्वारा उपद्रव तथा पाखंडः सहज ही नाश हो जाते हैं ॥ २६ ॥ ये सब धूर्तपन-चाणाक्षता-के काम हैं। राजनैतिक विषयों में दृढ़ता चाहिए । ढीलेपन के भ्रम में न पड़ना चाहिए ॥ २७ ॥ (जो चतुर राजनैतिक होता है वह ) कहीं भी देख नहीं पड़ता; पर ठौर और में उसीकी बातें होती रहती हैं और अपने वाग्विलास से वह सारी सृष्टि को मोहित कर लेता है ॥२८॥ भोंदू के साथ भोंदू लगा देना चाहिए, हूल के साथ इस को भिड़ाना चाहिए और मूढ़ के सामने दूसरा मूढ़ खड़ा कर देना चाहिए ॥ २६॥ लट्ठ का सामना लह ही से करा देना चाहिए, उद्धट के लिए उद्धट चाहिए और नटखट के सामने नटखट की ही आवश्यकता है ॥ ३०॥ जैसे को तैसा जब मिलता है तभी किसी संस्था की मजा देख पड़ती है। इतना सब हो रहा है; तथापि यह पता न लंगना चाहिए कि, धनी-इन सब बातों का कर्ता-कहां ॥३१॥