पृष्ठ:दासबोध.pdf/५५७

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वीसवाँ दशक। पहला समास-पूर्ण और अपूर्ण । ॥ श्रीराम ॥ जीच, मन, पृथ्वी, आप, तेज, वायु, आकाश, त्रिगुण, अन्तरात्मा और मूल माया सब व्यापक हैं ॥१॥ निर्गुण ब्रह्म भी व्यापक है-इस प्रकार ये सभी व्यापक हैं तो फिर क्या सव समान ही हैं या कुछ भेद है ? ॥२॥ यह भी एक सन्देह की बात है कि, लोग आत्मा को निरंजन कहते हैं । आत्मा सगुण है या निर्गुण ? अथवा निरंजन है? ॥ ३॥ इस प्रकार श्रोता आशंका करने लगा ॥४॥ अच्छा, अब आशंका का उत्तर सुनो सारा गड़बड़ ही न कर डालो! विवेक को प्रकट करके अनुभव प्राप्त करो ॥ ५ ॥ शरीर और सामर्थ्य के अनुसार जीव की व्यापकता होती है; पर मन के समान वह चपल नहीं है ॥६॥ चपलपन एकदेशीय है-उसमें पूर्ण व्यापकता नहीं है। पृथ्वी को भी मर्यादा है ॥ ७ ॥ उसी प्रकार आप और तेज भी स्वाभाविक ही अपूर्ण दिखते हैं। वायु को मी चपल और एकदेशीय समझो ॥ ८॥ हां, आकाश और निराकार परब्रह्म निस्सन्देह पूर्ण व्यापक हैं ॥ ६ ॥ त्रिगुण और माया का भी नाश हो जायगा; अतएव ये भी अपूर्ण तथा एकदेशीय हैं-पूर्ण और व्यापक नहीं हैं ॥ १०॥ आत्मा और निरंजन, दोनों अलग अलग हैं । अब इनका भेद ठीक ठीक बतलाते हैं ॥ ११॥ आत्मा, (अर्थात् मन) अत्यन्त चपल है, इस कारण यह व्यापक नहीं हो सकता । यह वात, अन्तःकरण को विमल और सुचित्त करके, समझनी चाहिए ॥ १२ ॥ वह (आत्मा या मन) यदि आकाश में रहता है तो पाताल में नहीं रहता; और यदि पाताल में रहता है तो आकाश में नहीं रहता; अर्थात् चारो ओर पूर्ण नहीं रहता ॥ १३॥ उसे यदि आगे रखते हैं तो पीछे नहीं रहता, दाहने रखते हैं तो वायें नहीं रहता-सारांश, दशो दिशा में वह व्यापक नहीं है ॥ १४ ॥ एक साथ ही सब जगह मन बरावर नहीं रहता। इससे मन की अपूर्णता का अनुभव हो सकता है ॥ १५ ॥ पर- ब्रह्म के लिए सूर्य का भी दृष्टान्त नहीं दिया जा सकता क्योंकि सूर्य का उदय और अस्त है; परन्तु परब्रह्म सदोदित और निर्गुणं है ॥ १६ ॥ हां, घटाकाश, भठाकाश और महदाकाश का दृष्टान्त अवश्य निर्गुण