पृष्ठ:दासबोध.pdf/५५९

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समास २] निविधा सृष्टि। चला जाता है; पर वह ब्रह्म इस प्रकार निश्चल रहता है जैसे गगन चारो ओर भरा हुआ है ॥ २॥ जिधर देखिये उधर ही वह अपार है, उसका किसी और पार नहीं है। वह एक ही प्रकार का और स्वतंत्र है, उसमें द्वैत नहीं है ॥३॥ ब्रह्मांड के ऊपर बैठ कर-ब्रह्मांड को अदृश्य मान कर-- आकाश के अवकाश को और उसके शून्याकार को अवलोकन करना चाहिए-उसकी कल्पना करनी चाहिए। ऐसा करने से मालूम होगा कि वहां चंचल और व्यापक के नाम पर शून्याकार है ॥ ४॥ दृश्य को विवेक से अलग कर देने पर फिर चारो ओर परब्रह्म ही भरा हुभा है; पर वह कभी किसीके 'अनुमान' में नहीं पाता ॥ ५॥ नीचे-ऊपर और चारों ओर निर्गुण ब्रह्म ही सब जगह दिखता है। उसका अंत पाने के लिए मत किस ओर दौड़ेगा? ॥ ६ ॥ दृश्य चलता है, ब्रह्म अचल है; दृश्य जान पड़ता है, ब्रह्म जान नहीं पड़ता और दृश्य का कल्पना को आकलन होता है। परन्तु परब्रह्म का नहीं होता।। ७॥ कल्पना कोई चीज नहीं; परन्तु ब्रह्म सर्वत्र भरा हुआ है। महावाक्य के अर्थ का मनन करते रहना चाहिए ॥ ८ ॥ परब्रह्म के समान और कोई श्रेष्ठ नहीं है, श्रवण को छोड़ कर कोई साधन नहीं है और बिना जाने कुछ भी समा- धान नहीं हो सकता ॥ ६॥ पिपीलिका-मार्ग से धीरे धीरे मालूम होता है और विहंगम मार्ग से शीघ्र फल मिलता है। साधक जन मनन में प्रवेश करता है तब कल्याण होता है ॥ १० ॥ परब्रह्म के समान दूसरा कुछ भी सत्य नहीं है । निन्दा और स्तुति की बातें परब्रह्म में नहीं हैं ॥ ११ ॥ इस प्रकार परब्रह्म अनुपम है । उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता । जो महानुभाव और पुण्यराशि हैं उन्हींका वहां प्रवेश होता है ॥ १२ ॥ चंचल से दुःख-प्राप्ति होती है । निश्चल के समान और कहीं विश्रान्ति नहीं है । महानुभाव पुरुष निश्चल को अनुभव से देखते हैं ॥१३॥ जो आदि से लेकर अन्त तक विचार किया ही करता है उसीको अनुभव का निश्चय प्राप्त होता है ॥ १४ ॥ यह कल्पना की सृष्टि तीन प्रकार से भासती है। तीक्ष्ण बुद्धि से उसे मन में लाना चाहिए ॥ १५ ॥ मूलमाया से त्रिगुण होते हैं । वे सव एकदेशीय हैं । और पंचभूतों का स्थूल गुण प्रत्यक्ष दिख रहा है । ॥ १६ ॥ पृथ्वी से चारो खानियां होती हैं, उनका चार प्रकार का कृत्य भी अलग अलग है। बस, सारी सृष्टि की चाल यहीं से है ॥ १७ ॥ अब सृष्टि का त्रिविध लक्षण विशद करके बतलाता हूं। श्रोताओं को अपना अन्तःकरण सावधान करना चाहिए ॥ १८ ॥ चेतनारूप मूलमाया आदि से ही सूक्ष्म कल्पनारूप है। जैसे