पृष्ठ:दासबोध.pdf/५६४

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दासबोध। [ दशक १० परन्तु उसके कृत्य का विभाग अलग अलग हो गया है, तथापि अहंता के भ्रम में न पड़ना चाहिए ॥ २७ ॥ "हरिता हरिभक्का" का सिद्धान्त जगत् में वर्त रहा है-पर इसका विचार करना चाहिए ॥ २८ ॥ सर्व- कर्ता परमेश्वर है; 'मैं' कोई चीज नहीं । जैसी उसकी स्मृति हो वैसा बर्ताव, जगत् के अन्तःकरण में मिल कर करना चाहिए ॥ २६ ॥ श्रात्मा के समान और कोई चंचल नहीं तथा परब्रह्म के समान और कुछ. निश्चल नहीं । सोपान परम्परा से, मूल तक चढ़ कर, अनुभव प्राप्त करना चाहिए ॥ ३॥

  • चवाँ समास-पदार्थ-चतुष्टय ।

॥ श्रीराम ।। यहां से वहां तक देखने पर जान पड़ता है कि, कुल चार पदार्थ हैं एक, (परब्रह्म) चौदह, (मूलमाया) पांच, ( भूत ) और चार (खानि)॥ १ ॥ परन्तु परब्रह्म सब से अलग , वह सब से श्रेष्ठ तथा नाना कल्पनाओं से भिन्न है ॥२॥ परब्रह्म का विचार नाना कल्पनाओं से परे है-वह निर्मल, निश्चल, निर्विकार और अखंड है ॥ ३॥ अव, अन्य तीन पदार्थ, नाना कल्पनारूप मूलमाया के अन्तर्गत हैं ॥ ४ ॥ मूल- माया नाना प्रकार से सूक्ष्मरूप है। वह सूक्ष्मरूप होकर भी कर्दम- रूप है और उस पर मूल के संकल्प का आरोप आता है ॥ ५ ॥ मूल का हरिसंकल्प ही सब का आत्माराम है । अब भिन्न भिन्न नामों का विवरण सुनियेः-॥ ६ ॥ निश्चल में चंचल का चेत होता है, इस लिए चैतन्य कहलाता है और गुण-समानता के कारण गुणसास्य कहलाता है ॥ ७॥ अर्धनारी नटेश्वर, पड्गुणेश्वर, प्रकृतिपुरुष, शिवशक्ति भी उसीको कहते हैं ॥ ८॥ शुद्ध सत्वगुण, अर्धमात्रा, गुणनोभिणी और फिर भागे तीनों गुण प्रकट होते हैं ॥ ६॥ मन, माया और अंतरात्मा तक इन चौदह नामों की गिनती है। सत्र में ज्ञानात्मा विद्यमान है॥१०॥ पहला परब्रह्म हुना, दूसरी यह चौदह नामोंवाली मूलमाया हुई । अब तीसरा प्रकार पंचभूतों का बतलाते हैं। ॥ ११ ॥ पंचमहाभूतों में ज्ञातृत्व- शक्षिा थोड़ी है। उनका आदि अन्त प्रत्यक्ष है। अब, चौथी किस्म खानियों की है, सो भी बतलाते हैं:-॥ १२॥ चार खानियों में अनंत प्राणी है । उन सब में ज्ञातृत्वशक्ति खूब भरी हुई है। इस प्रकार पहला