पृष्ठ:दासबोध.pdf/५६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

समास ५] पदार्थ-चतुष्टय। ४८७ ब्रह्म, दूसरी माया, तीसरे पंचभूत और चौथे चार खनि-ये चार पदार्थ . बीज चोला बोया जाता है पर आगे बहुत पैदा होता है-यही हाल खनियां और वाणियां प्रगट होने से आत्मा का होता है |॥ १४॥ इस प्रकार सत्ता प्रबल हुई है, बोड़ी सत्ता की बहुत हो गई है और मनुष्य- वैप से, नाना प्रकार से, सृष्टि का भोग करती है ।। १५ ॥ श्वापद जन्तु अन्य प्राणियों को मार मार खा जाते हैं, बस, इसके सिवाय, वे कुछ नहीं जानते; परन्तु मनुप्यप्राणी नाना प्रकार के भोग भोगता है ॥ १६ ॥ नाना प्रकार के शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, विशेषरूपसे', नरदेह ही जानता है ।। २७ ॥ अमूल्य रत, नाना प्रकार के वस्त्र, 'म रास्त्र विद्या, कला और शास्त्र नरदेह ही जानता है ॥ १८ ॥ पृश्यावर सत्ता से व्याप्त है, जगह जगह सत्ता सम्पूर्णरूप से भरी है, २. उत्तीसे नाना विद्या, कला और धारणा इत्यादि उत्पन्न हुई है ॥ १६ .. नरदेह पाकर, सभी दृश्य देखना चाहिए, स्थानमान सँभालना चाहिए, और सारासार विचारना चाहिए ॥ २० ॥ इहलोक, परलोक, नाना प्रकार का विवेक और अविवेक मनुष्य ही जानता है ॥ २१ ॥ नाना प्रकार के पिंड, ब्रह्मांड की रचना, नाना मूलों की अनेक प्रकार की कल्पना और नाना प्रकार की धारणा मनुष्य ही जानता है ।। २२ ॥ अष्टमोग, नवरस, नाना प्रकार का विलास, बाच्यांश, लक्ष्यांश और सारांश मनुष्य ही जानता है ॥ २३ ॥ मनुष्य सब का आकलन करता है, उस मनुष्य को ईश्वर पालता है-यह सब नरदेह के योग से मालूम होता है ॥ २४ ॥ नरदेह परम दुर्लभ है, इससे अलभ्य लाभ मिलता है और इसीके योग से दुर्लभ भी सुलभ होता है ॥ २५ ॥ दूसरे देह कूड़ा-करकट हैं, नरदेह एक बड़ा भारी खजाना है; परन्तु (नरदेह पाकर ) उत्तम विवेक का ग्रहण करना चाहिए ॥ २६ ॥ जो नरदेह पाकर, विवेकवल से परमात्मा को नहीं पहचानता वह सब प्रकार से डूबता है ॥ २७ ॥ यदि विश्वास- पूर्वक श्रवण करे, और सदा मननशील अन्तःकरण रखे, तो नर ही नारा- यण है ॥ २८ ॥ जो स्वयं तैरना जानता है उसे दूसरे की कमर पकड़ कर सहारा नहीं लेना पड़ता । स्वतंत्रता से सब कुछ खोजना चाहिए ॥ २६॥ जो पदार्थमात्र का खोज करता है उसे सन्देह नहीं रहता। इस- के बाद-निस्संदेह अवस्था में-वह कैसे रहता है, सो उसका वही जानता है ॥३०॥