पृष्ठ:दासबोध.pdf/५६६

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m दासबोध। [ दशक २० " छठवाँ समास-आत्मा के गुण । ।। श्रीराम ॥ इस पृथ्वीमंडल पर कहीं कहीं बहुत सा जल भरा हुआ है और कहीं कहीं बड़े बड़े रेतीले मैदान हैं, जिनमें जल का कहीं नाम-निशान भी नहीं है ॥ १॥ बल, इसी प्रकार यह दृश्य फैला हुआ है। इसमें कहीं चेतना- शन्ति जागृत है और कहीं उसका अभाव देख पड़ता है ॥ २॥ चार खा- नियां चार वाणियां और चौरासी लाख जीव-योनियां हैं-ये सब इस प्रकार शास्त्र में निश्चय करके कही गई है:-॥ ३॥ चार लाख मनुय्य, बीस लाख पशु, ग्यारह लाख क्रिमि शास्त्र में कहे हैं ॥४॥ दस लाख खेजर, नौ लाख जलचर और तीस लाख स्थावर शास्त्र में कहे हैं ॥ ५॥ इस प्रकार चौरासी लाख योनियां हैं। जो प्राणी जिस योनि में है उतना ही वह जानकार है । इन योनियों में अनन्त देह भरे पड़े हैं। उनकी अर्यादा वतलाना कठिन है ॥६॥ अनंत प्राणी होते जाते हैं। उनका अधिष्टान पृथ्वी है । पृथ्वी बिना उनकी स्थिति कहां हो सकती है ? ॥ ७ ॥ पंचभूत जो प्रकट होते हैं उनमें कोई आकृति धारण करते हैं और कोई योही रहते हैं ॥ ८ ॥ चपलता ही अन्तरात्मा की पहचान है। अब ज्ञातृत्व का अधिष्टान सावधान होकर सुनो ॥ ६ || सुखदुख जाननेवाला जीव है, वैसा ही 'शिव' को भी जानो और अन्तःकरणपंचक आत्मा का अंश है ॥ १० ॥ स्थूल में जो अाकाश के गुण हैं वे आत्मा के अंश है और सत्व, रज तथा तमोगुण श्रात्मा के गुण हैं ॥ ११ ॥ नाना प्रकार की चेष्टा, धृति, नवधा भक्ति, चतुर्धा सुक्षिा अलिप्तता और सहजस्थिति आत्मा के गुण है ॥ १२ ॥ द्रष्टा, साक्षी, ज्ञानधन, सत्ता, चैतन्य, पुरातन, श्रवरण, मनन, विवरण, आत्मा के गुण हैं ॥१३॥ दृश्य, द्रष्टा, दर्शन; ध्येय, ध्याता, ध्यान; शेय, ज्ञाता और ज्ञान, श्रात्मा के गुण हैं ॥ १४ ॥ वेदशास्त्र और पुराण का अर्थ, गुप्त चलता हुआ परमार्थ और सर्वज्ञता के साथ सामर्थ्य, आत्मा के गुण ॥ १५ ॥ बद्ध, मुमुक्षु, साधक, सिद्ध, शुद्ध विचार करना, बोध और पत्रोध, आत्मा के गुण हैं ॥ १६ ॥ जागृति, स्वप्न, सुपुप्ति, तुर्था, प्रकृतिपुरुय, मूलसाया, पिंड, ब्रह्मांड और अष्ट काया, आत्मा के गुण हैं ॥ १७ ॥ परमात्मा और परमेश्वरी, जगदात्मा और जगदीश्वरी, तथा.महेश और माहेश्वरी, आत्मा के गुण हैं ॥ १८ ॥ जितना कुछ सूक्ष्म 'नामरूप है उतना सब श्रात्मा का स्वरूप है । उसके अनन्त नाम और