पृष्ठ:दासबोध.pdf/५९

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दासबोध की आलोचना। "मब लोग यही कहते है कि पशु-देह में गति नहीं है । परलोक नरदेह में ही मिलता है। नरदेह स्वाधीन है; यह सहसा पराधीन नहीं होती । इसे परोप.. कार में लगा कर कीर्तिरूप से अमर कर देना चाहिए । " परन्तु स्मरण रहे कि यह शुद्ध और विमल विवेक-दृष्टि, गुरु-कृपा का अञ्जन पाये बिना कदापि नहीं हो सकती । इस लाभ को क्षुद्र लाभ न समझना चाहिए । नरदेह की मिट्टी खराब करनेवाले गुरुओं के लिए समर्थ कहते हैं कि यदि ऐसे गुरु कौड़ी के तीन तीन मिलें, तो भी न पूछना चाहिए। जो अविद्या माया का मूल छेदन करें, अन्तर्वाह्य इन्द्रियों के दमन और निग्रह की शिक्षा दें और भव- सागर के पार लगावें; वही सद्गुरु हैं । ऐसे गुरु विरले मिलते हैं । ऐसे गुरु द्रव्य से नहीं मिलते । पूर्वपुण्य से ही मिलते हैं। इस पूर्व-पुण्य को सफल करने का काम गुरु का है। समर्थ कहते हैं कि समाज में जो असत् विद्या का प्रचार दीख पड़ता है, उसका दोष केवल शिष्यों को ही न देना चाहिए। यह दोष गुरु को भी लागू होता है । अर्थात् असत् गुरु के कारण समाज में अनीति, अधर्म और अनाचार का प्रचार होता है । शिष्य अर्थात् समाज के सर्वसाधारण लोग तो जान-बूझ कर अज्ञान और मूढ़ हैं ही । अव उनके माथे केवल दोप मढ़ देने से ही और क्या लाभ होगा? समाज को सुमार्ग पर चलाने की सब जिम्मेदारी और जवाब-दही, समर्थ के मतानुसार, सद्गुरु के ही ऊपर है:- येथे शब्द नाहीं शिप्यासी। है अवधै सदशुरूपासी। सदगुरु पालटी अवगुणासी । नाना यत्ने करूनी ॥ १५ ॥ द०५स०३ " इसमें शिष्य का कोई दोष नहीं, यह सव सद्गुरु का काम है। सद्गुरु अनेक प्रकार के यत्न करके समाज के अवगुणों को पलट सकता है । ” जो सद्गुरु सर्वज्ञ हैं; आत्मज्ञानी है, अनुभवी हैं, विरक्त हैं, निस्पृह' हैं, वे यदि समाज-के नायक वन कर लोगों को उचित मार्ग की शिक्षा न दें, तो यह काम दूसरा और कौन करेगा? जब इस प्रकार के सद्गुरु हिमालय को कन्दराओं में बैठ कर एकान्त स्वानुभव से प्राप्त होनेवाले ब्रह्मानन्द का क्षण भर त्याग करके समाज का हित करने के लिए, परोपकार करने के लिए (जिसके लिए उनकी विभूति है ) समाज में आते हैं और समाज का नायकत्व स्वीकार करते हैं, तब उनके तेज, प्रभाव और प्रतिभा के कारण उन्हें मुमुक्षु सतशिष्य भी मिल जाते हैं। जहाँ सद्गुरु और मुमुक्षु का मिलाप हुआ वहाँ मानो मेघ और चातक का मिलाप हुआ अथवा कृष्ण और अर्जुन की भेंट हुई या रामदास और शिवाजी की जोड़ी मिल गई! ऐसा होते ही मुमुक्षु शिष्य परमार्थ या जनोद्धार के साधन में लग जाते हैं।