पृष्ठ:दासबोध.pdf/६०

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परमार्थ-मार्ग में साधक और सिद्ध। ९--परमार्थ-मार्ग में साधक और सिद्ध । "परमार्थ-मार्ग के साधन में लगते ही वह परोपकार या जनोद्धार को इच्छा रखनेवाला निरहङ्कारी मुमुक्षु साधक की अवस्था को प्राप्त हो जाता है | उस अवस्था में वह देखता है कि परमार्थ क्या है। समर्थ कहते हैं कि :---- "परमार्थ तपस्वियों और साधकों का आधार है । परमार्थ भवसागर से पार करता है। जब अनन्त जन्मों का फल इकट्ठा हो रहता है, तब परमार्थ हो सकता है। परमार्थ से मुख्य परमात्मा अनुभव में आ जाता है"। और आत्मानुभव होना ही माया के बन्धन से छूटना है । इसीका नाम मोक्ष और स्वतन्त्रता है और यही परमार्थ है। इसके प्राप्त करने का मार्ग या साधन क्या है ? ज्ञानमार्ग, योगमार्ग, क्रममार्ग या भक्तिमार्ग? इस प्रकार अनेक प्रश्नों का विवेचन समर्थ ने पाँचवें दशक के सातवें समास से लेकर वीसवें दशक तक किया है । अस्तु: इन्हीं अनेक मागों से साधक परमार्थ के लिए दृढ़तापूर्वक साधन करता है; सन्त-समागम करता है, अद्वैत-निरूपण का श्रवण-मनन करता है, सारासार• विचार से सन्देहों, सांसारिक विकल्पों का नाश करके आत्मज्ञान का विवेक करता है। विवेक .1 से देहबुद्धि---मैं-तू-पन--को रोकता है। माया की उपाधि छोड़ कर असाध्य वस्तु ( आत्मा परब्रह्म) को साधन से साधता है। और सत्स्वरूप में अपनी बुद्धि दृढ़ता के साथ रखता है। इस प्रकार साधन करते करते, गुरु के उपदेश से, नरदेह की सार्थकता करके, वह इस भवसागर के पार हो जाता है। माया के पटल को छेद डालता है-अज्ञान का नाश करता है--अपने आपको (आत्मा को) पहचानता है--सत्वरूप में लीन हो जाता है। ऐसी दशा आने पर वही साधक, जो बद्ध से मुमुक्षु और मुमुक्षु से साधक हुआ था, सिद्ध कहलाता है। समर्थ के मता- नुसार साधक की अन्तिम या निस्सन्देही अवस्था को ही सिद्धावस्था कहते हैं । सिद्ध पुरुष सिद्ध होकर भी ' साधक' बना ही रहता है वह साधन कभी नहीं छोड़ता। देखिए, समर्थ सिद्ध का लक्षण बतलाते हुए कहते हैं:- 1 "सिद्ध के लक्षण साधक विना बतलाये ही नहीं जा सकते--सिद्ध-लक्षणों में साधकता आनी ही चाहिए। जो वाहर से साधक सा मालम होता हो–साधन की कृति करता हो- - और अन्तर में खल्पाकार हो, उसीको चतुर पुल्प सिद्ध जाने।" कोई कहेगा कि जव वह साधन करता है तव सिद्ध कैसा ? समर्थ उत्तर देते हैं-सन्देह-रहित साधन करना ही सिद्ध का लक्षण है, उसके साधनों में भीतर-बाहर अचल समाधान रहता है । अस्तु; ग्रह ध्यान में रखना चाहिए कि समर्थ ने इसी सिद्ध' को अपने ' दासबोध ' में 'महन्त, साधु, ‘विरता' और 'निस्पृह ' आदि नाम दिये हैं। ' .