पृष्ठ:दासबोध.pdf/६१

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४ दासबोध की आलोचना। १०--सुसुक्षु की सहायता से साधक और सिद्ध का कर्तव्य । सिद्ध ता स्वतन्त्र हो गये---मुक्त हो गये। साधक उस स्थिति के पहुँचने के मार्ग में हैं । मुमुक्षु खतन्त्र स्थिति या मुक्तावस्था को पहुँचने की इच्छा करता है--अर्थात् ये तीन प्रकार के लोग मुक्ति, मोक्ष या स्वतन्त्रता की स्थिति में रहते हैं, या उस स्थिति में पहुँ- चने की इच्छा करते हैं। अब रहे बद्ध लोग । समर्थ कहते हैं कि बद्ध लोगों को मुक्ति के मार्ग में लगाने का काम सिद्ध और साधकों को, मुमुक्षु जनों की सहायता से, करना चाहिए:--- विरक्त निन्दक बन्दावें । विरक्ते साधक वे। चिरले बद्ध वेचवावे । मुमुक्षु निरूपणे ॥ ३८ ॥ द०२स०९ विरक्त अथवा सिद्ध पुरुषों को निन्दको की वन्दना करना चाहिए। साधकों का वोध करना चाहिए और मुमुक्षु की सहायता से निरूपण द्वारा बद्ध जनों को मुक्त करना चाहिए--परतन्त्र पुरुषों को स्वतन्त्र करना चाहिए । जव यह कार्य सफल होगा, तभी सवको परमार्थ-लाभ होगा और नरदेह की सार्थकता होगी। अर्थात् जब सब लोगों को परमार्थ की प्राप्ति हो जायगी--सब लोगों को मोक्ष या पूर्ण स्वतन्त्रता मिल जायगी- तव अखिल मनुष्यजाति का उद्धार होगा--यही मनुष्य-जाति का उद्धार ससर्थ का सर्वे:- त्तम ध्येय है । समर्थ कहते हैं कि जब तक यह सार्वजनिक उद्धार न हो, तब तक प्रयत्न करते ही रहना चाहिए। यही मनुष्य-जाति के नरदेह-प्राप्ति के--यत्न का सर्वो- त्तम ध्येय है । जब इस ध्येय को प्राप्त करने में--मनुष्य-जाति का उद्धार करने में- यत्न होने लगता है, तव मनुष्य-जाति के इतिहास का आरम्भ होता है। यह यत्न जाने कव से हो रहा है-मनुष्य-जाति के इतिहास का न जाने कव से आरम्भ हुआ, पर इसमें सन्देह नहीं कि जव तक अखिल प्राणिमात्र ( मनुष्य-जाति) को परमार्थ की प्राप्ति न होगी--पूर्ण स्वतन्त्रता या मुक्ति न मिलेगी--तब तक यह यत्न होता ही रहेगा, और मनुष्य-जाति का इतिहास बनता ही चला जायगा । अब देखना चाहिए कि इस सर्वोत्तम "येय को पूर्ण करने के लिए---जनोद्धार करने के लिए---सिद्धों को किन किन उपायों का अवलम्बन करने के लिए समर्थ ने इस ग्रन्थ में उपदेश दिया है। ११.-लोकोद्धार के तीन उपाय । ‘समर्थ ने अपने दासबोध में इस बात का विस्तृत विवेचन किया है कि सिद्ध और साधकों को, मुमुक्षुजनों की सहायता से, बद्ध लोगों का उद्धार किस तरह करना चाहिए--- परतन्त्र लोगों के मन में स्वतन्त्रता की इच्छा उत्पन्न करके, उसका वन्धन किस प्रकार तोड़ना चाहिए । यही इस ग्रन्थ की विशेषता है। इस विषय का निरूपण करते हुए