दासबोध। S5 मेरा उददा निः यह बतलाने का है कि वर्तमान ग्रंथप्रकाशकों की रुचि-भिन्नता, अदूरदर्शिता और उदासीनता के कारण प्रस्तुत ग्रंथ के प्रकाशित होने में बहुत विलंब हो गया। प्रायः दो वर्ष तक कोई प्रकाशक नहीं मिला । अंत में पूना के सुप्रसिद्ध विमशाला प्रेस ने अपना स्वाभाविक. उदान्ता तथा साहित्य-सेवा के कर्तव्य से प्रेरित शेषरसाहा नियना प्रकट की। गन् १९११ है के आरंभ से चि. शा. प्रेस के द्वारा चिनमय-जगत् " नामक एक मानिक पत्र हिन्दी में प्रकाशित होने लगा । पहले पहल में अनुज वाजपेयीजा यहाँ (रायपुर ) में उन्न मानिक पत्र कर कुछ काम किया करते थे। परन्तु इछ दिनों के बाद उन्हें पूने ई में रह कर पत्र-सम्पादन का कार्य करना पड़ा । आपकी स्वाध सहित हिन्दी सेवा में प्रेस के नाम श्रीयुत वासुदेवरावजी जोशी बहुत प्रसन्न होने अपने छापेखाने में हिन्दी-अंथ प्रकाशन का एक नया विभाग खोल दिया जारभावासन दिया कि हिन्दी के उत्तमोत्तम ग्रंथ प्रकाशित करने का भनभ किया जायगा । म आश्वासन मा भवन फल यही है कि हमारा " हिन्दी- दालोध. 'दो दर्व में कुछ अधिक समय नक. अंधेरे में पड़ा रहने के बाद, भाज हिन्दी-पाटन सन्मुक अकरकर ने उपस्थित हुआ है । छापने का काम गत अगस्त महीने में पारन दिला गया और इस महीने में पूरा हो गया। इससे प्रेस के मैनेज धीयुत शंकर नरहर जोशी महाशय की कार्यतत्परता और भुव्यवस्था प्रकट होती है। अजएव में अपने कर्तव्य की ओर ध्यान देकर उक्त दोनों (श्रीयुत वासुदेवराव जोशी और श्रीयुत शं० न० जोशी ) महानु- भात्रों को अनेक सादेक. धन्यवाद देता हूं । इस ग्रंथ के बाद “भारतीय युद्ध, श्रीरामचरिक, आत्मविद्या," इत्यादि और भी ग्रंथ प्रकाशित होंगे जो सब लिखे तैयार है। अब पटनवालों से यह निवेदन है कि, आप इस बात को न भूलिये कि यह प्रेथ को जारी किस्सा था अद्भुत उपन्यास नहीं है जो एक बार पढ़कर किनी कोने में फेवा दिया जाय । इसमें ऐसी अनेक थानें बताई गई है जो आत्मा, व्यक्ति, समाज और देश के हित की दृष्टि से विचार करने तथा कार्य में परिणत करने योग्य है । इस लिए परमार्थ की इच्छा रखनेवाले पुरुष को विशेषकर इस अन्य का पूर्वार्ध और सांसारिक अभ्युदय चाहनेवाले मनुष्य को इसका उत्तरार्ध चारचार मननपूर्वक पढ़ना चाहिए । इन सब गंभीर बातों का उहख आलोचना में किया गया है। यदि आप उन पर उचित 'यान देंगे तो इसमें संदेह नहीं कि आपका कल्याण अवश्य होगा। जिस सद्गुरु की उपायुत प्रेरणा से श्रीरामदासस्वामी के सामर्थ्यशाली दालयोष का अनुवाद-किया-रुप से दृढ़ परिचय प्राप्त हुआ उसकी दयालुता को स्मरण करके और उसके भरण-कमों का परिवार वंदन करके मैं इस भूमिका को 7