पृष्ठ:दासबोध.pdf/८

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भूमिका समाप्त करता हूं। मैं आशा करता हूं कि, श्रीसमर्थ ने सोलहवें दशक के, दसवें समास के २९-३० पद्यों में वैदिक धर्म के सर्वोत्तम तत्त्व का उल्लेख करके जो हितदायक उपदेश किया है उसको ओर मेरा और इस ग्रंथ के पढ़नेवाले मेरे सब मित्रों का ध्यान सदा बना रहेगा ! देखिये, समर्थ क्या कहते हैं:-" उपासना का बड़ा भारी आश्रय है, उपासना बिना काम नहीं चल सकता--चाहे जिनना उपाय किया जाय, परंतु सफलता नहीं हो सकती ॥ २९ ॥ जिसे समर्थ का आश्रय नहीं होता उसे चाहे जो कूट डालता है ! लिये सदा भजन करते रहना चाहिये ॥३०॥ इस पुस्तक में प्रथित 'बोध' के अनुसार आचरण करने की सद्बुद्धि परमात्मा की कृपा से सब लोगों को प्राप्त हो, यही अंतिम प्रार्थना है । श्रीरामदासी मठ, सद्गुरुचरणावित रायपुर (सी० पी०), दास ता०७-१२-१९१२० माधव संप्रे। PINOY