पृष्ठ:दासबोध.pdf/८६

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समान ३] शारदा-स्तुति। प्रभा छा गई है । साहित्य-विषय में निपुण अष्टनायका भी गणेशजी के साय सभा में मौजूद हैं ॥२४॥ ऐसा जो गणपति सर्वांग सुन्दर और सकल विद्याओं का श्रागर है उन्ने मेरा भावयुक्त साष्टांग नमस्कार है ॥२५॥ गणेश का रूप वर्णन करते सीमान्त लोगों की मति प्रकाशित हो जाती है। और गुणानुवाद श्रवण करते ही उन पर सरस्वती प्रसन्न होती है ॥२२॥ जब ब्रह्मा, श्रादि देवता उन्स गणपति की वन्दना करते है तब मनुष्य बिचारे की क्या गिनती है ? अस्तुः जो मन्दमति प्राणी हों, वे गणेश की चिन्तना करें ॥२७॥ जो मूर्ख और बुरे लक्षणों वाले हैं अथवा जो हीनों से भी हीन हैं च भी गणेशजी का चिन्तन करने से सब विषयों में दक्ष और प्रवीण होते हैं ॥ २८ ॥ वन परम समर्थ है। सब मनोर्थ पूरे करता है। यह बात अनुभवसिद्ध है कि उसका भजन करने से सब कार्य सिद्ध होते हैं । कलियुग में चंडी और विनायक, मुख्य देव है ॥२६॥ यहां पर उस मंगलमूर्ति गणेश की स्तुति, परमार्य की बांछा मन में रख कर, मैंने यथामति की है ॥ ३०॥ - तीसरा समास-शारदा-स्तुति। || श्रीराप्त ॥ अव वेदमाता, ब्रह्मसुता, शब्दमूला, वाग्देवता, महामाया श्रीशारदा की वंदना करता हूं ॥ १ ॥ जो शब्द-स्फूर्ति को उठाती है, जो वैखरी- द्वारा अपार वचन बुलाती है, जो शब्द का अभ्यन्तर, अर्थात् भीतर का भाव, प्रत्यक्ष कर देती है ॥२॥ जो योगियों की समाधि है, जो निश्चयी लोगों की कृतवुद्धि, अथवा दृढ़ता है, जो वयं विद्यारूप होकर अविद्या की उपाधि को तोड़ डालती है ॥ ३॥ जो महापुरुष की अति संलग्न भार्या है, जो तुर्या अवस्था है । जिसके योग से साधु लोग महत्कार्य में प्रवृत्त हुए हैं ॥ ४॥ जो महन्त की शान्ति है, जो ईश्वर की स्वयंशक्ति है, जो ज्ञानियों की विरक्ति है और जो निराश-अवस्था की शोभा है ॥ ५ ॥ जो अनंत ब्रह्माण्ड रचती है, और लीलाविनोदही से विगाड़ती है तथा जो खतः आदिपुरुष में छिपी रहती है ॥ ६ ॥ जो प्रत्यक्ष देखनेही से देख पड़ती है; किन्तु विचार करने से नहीं देख पड़ती । ब्रह्मादिको को जिसका पार नहीं मिलता ॥ ७ ॥ जो सारे संसार-नाटक की अंतर्कला, अर्थात् मूलसूत्र है । जो चित्शक्ति की निर्मल स्थाति है, और जिसके कारणही खानंद का सुख तथा ज्ञानशक्ति मिलती है ॥ ८॥ जो सुन्दर-