पृष्ठ:दासबोध.pdf/८९

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दासबोध। [दशक १ ॥ १३ ॥ परन्तु उस नदी को, गंगा नदी में मिलने के पहले, सब लोग नदी ही कहते हैं, कुछ गंगा नहीं कहते, परन्तु शिष्य का हाल ऐसा नहीं है, वह सर्वथा स्वामी ही हो जाता है ॥ १४॥ पारस लोहे को अपना सा (अर्थात् पारस ) नहीं कर सकता, सुवर्ण लोहे को बदल नहीं सकता, परन्तु सद्गुरु का भक्त उपदेश-द्वारा औरों को भी सद्गुरूही बना देता है ॥ १५ ॥ इस प्रकार शिष्य को गुरुत्व प्राप्त हो जाता है, लेकिन पारस के किये हुए सुवर्ण से सुवर्ण नहीं बनाया जा सकता, इस लिए सद्गुरु से पारस की उपमा नहीं लगती ॥ १६ ॥ यदि सागर से सद्गुरु की उपमा दी जाय तो यह भी ठीक नहीं क्योंकि वह अत्यंत हीखारा है। अथवा क्षीरसागर से यदि उपमा दी जाय तो वह भी ठीक नहीं क्योंकि तीर- सागर भी कल्पान्त से नाश होगा ॥ १७ ॥ यदि मेरु की उपमा दी जाय तो यह भी ठीक नहीं; क्योंकि वह जड़ पापाण के रूप में है । सद्गर वैसा नहीं है-वह दीन जनों के लिये कोमल है ॥१८॥ यदि आकाश की उपमा वतलाई जाय तो वह ( सद्रु का रूप) अाकाश की अपेक्षा निर्गुण है। इस कारण सद्गुरु से आकाश का दृष्टान्त भी हीन पड़ता है ॥ १६ ॥ धीरता में यदि सद्गुरु से धरती की उपमा दी जाय तो यह भी ठीक नहीं है क्योंकि धरती भी कल्पान्त में नाश होगी। इसलिए धीरता की उपमा में वसुन्धरा भी हीन पड़ती है ॥ २० ॥ अब यदि सूर्य की उपमा देते हैं तो उसके प्रकाश की भी शास्त्र मर्यादा बतलाते हैं । परन्तु सद्गुरु अमर्याद है ॥ २१ ॥ इस लिए सूर्य भी उपमा में कम है। सद्गुरु का ज्ञानरूपी प्रकाश बहुत बड़ा है । अब, यदि शेष से उपसा देते हैं तो यह भी नहीं लगती; क्योंकि शेप भारवाही, अर्थात् वोझा उठानेवाला है ॥ २२ ॥ अब जल की उपमा दी जाय तो वह भी कालान्तर में सूख जायगा । सद्गुरुरूप निश्चल है-वह कभी नहीं जा सकता ॥ २३ ॥ सद्गुरु से अमृत की उपमा दी जाय तो भी नहीं लगती; क्योंकि अमृतपान करनेवाले अमर, अर्थात् देवता, भी मृत्युपथ को प्राप्त होते हैं और सद्गुरुकृपा यथार्थ में, अर्थात् सचमुच अमर कर देती है ॥ २४ ॥ यदि सद्गुरु को कल्पतरु कहे तो भी ठीक नहीं; क्योंकि सद्गुरु का रूप कल्पनातीत, अर्थात् कल्पना के बाहर । है । इस विचार से कल्पवृक्ष की उपमा कौन स्वीकार करेगा? ॥ २५ ॥ जहां मन में चिन्ता ही नहीं है वहां चिन्तामणि को कौन पूछता है ? काम- धेनु का दूध निष्काम के किस काम का ? अर्थात् जो निष्काम है उसे कामधेनु की क्या जरूरत ? ॥ २६ ॥ सद्गुरु को यदि लक्ष्मीवन्त कहें तो