पृष्ठ:दासबोध.pdf/९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१० दासबोध। [दशक १ विवेक का संकोच हो जाता है, शब्द लड़खड़ाता है, और मन की गति काम नहीं देती ॥ १० ॥ सहस्र मुख का शेष बड़ा वाचाल कहलाता है, वह भी जहां बिलकुल थक गया है ॥११॥ वेद ने सभी कुछ प्रकट किया है; वेदविरहित कुछ नहीं है। वह घेद भी जो " वस्तु" किसीको नहीं दिखा सकता ॥ १२ ॥ वही वस्तु संतसंग से, खानुभव, अर्थात् अपने अनुभव, के द्वारा, मालूम होने लगती है। ऐसे संतों की महिमा कौन वर्णन कर सकता है ? ॥ १३ ॥ इस माया की कला विचित्र है; परन्तु वह भी 'वस्तु' की पहचान नहीं बतला सकती। उसी मायातीत अनन्त की, अर्थात् 'वस्तु' की, राह संत लोग बतला देते हैं ॥ १४॥ जिस वस्तु का वर्णन किया नहीं जा सकता । वही " वस्तु" संतों का रूप है । इस लिए 'वस्तु' की तरह संत भी अनिर्वचनीय हैं ॥ १५ ॥ सन्त आनन्द के घर हैं, सन्त सच्चे सुख के स्वरूप हैं, और सन्त नाना प्रकार के संतोप के मूल हैं ॥ १६ ॥ संत विश्रान्ति की भी विश्रान्ति हैं, तृप्ति की भी तृप्ति हैं । किंबहुना संत ही भक्ति के परिणाम है ॥ १७ ॥ संत धर्म के धर्मक्षेत्र, स्वरूप के सत्पात्र और पुण्य की पवित्र पुण्यभूमि हैं ॥ १८॥ संत लोग समाधि के मंदिर और विवेक के भांडार हैं । वे सायुज्यमुक्ति के अधिष्टान हैं ॥ १६ ॥ संत सत्य के निश्चय, सार्थक के जय, प्राप्ति के समय और सिद्धरूप हैं ॥२०॥ संत ऐसे श्रीमन्त है जो मोक्षश्री से अलंकृत रहते हैं। उन्होंने असंख्य दरिद्री (अज्ञान) जीवों को राजा (मुक्ता ) बना दिया है ॥ २१ ॥ अन्य लोग, जो समर्थ और उदार हैं, या जो अत्यन्त दानशूर हैं वे यह ज्ञानरूप धन नहीं दे सकते ॥ २२ ॥ कितनेही चक्रवर्ती महाराजा होगये हैं, और भागे होंगे; परन्तु कोई भी सायुज्यमुक्ति नहीं दे सकते ॥ २३ ॥ तीनों लोक में जो दान नहीं होता वही दान सज्जन संत करते हैं । ऐसे संतों की महिमा क्या वर्णन की जाय ? ॥ २४ ॥ जो तीनों लोक से अलग है और वेदश्रुतियों से जो नहीं जाना जाता वही परब्रह्म संतों के प्रसन्न होने से अन्तःकरण में श्रा जाता है ॥ २५ ॥ ऐसी संतो की महिमा है। उनकी जितनी प्रशंसा की जाय, थोड़ी है। उनके द्वारा मुख्य परमात्मा प्रगट होता है ॥ २६ ॥ छठवाँ समास-श्रोताओं की स्तुति । ॥ श्रीराम ।। अन भक्त, ज्ञानी, संत, सज्जन, विरक्त, योगी, गुणवान् और सत्यवादी श्रोताजनों की वन्दना करता हूं ॥ १॥ ये श्रोता सतोगुण के सागर हैं,