पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१४३

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अपनी हस्ती ही से हो, जो कुछ हो प्रागही गर नहीं राफ़्लत ही सही 'शुम्र हरचन्द कि है बळ खिराम दिल के वू करने की फुर्सत ही सही हम कोई तर्क -ए-वफ़ा करते हैं न सही 'निश्क, मुसीबत ही सही कुछ तो दे, अय फ़्लक-ए-ना-इंसाफ आह-ओ-फ़र्याद की रुखसत ही सही हम भी तस्लीम की खू डालेंगे बेनियाजी तिरी 'पादत ही सही यार से छेड़ चली जाये, असद गर नहीं वस्ल , तो हसरत ही सही है आर्मीदगी में निकोहिश बजा मुझे सुब्ह-ए-वतन है खन्द:- ए - दन्दाँनुमा मुझे Bण्डे है उस मुरान्नि-ए-आतश नफ़स को जी जिसकी सदा हो जल्वः-ए-बक़-ए-फ़ना मुझे