पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१८६

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कभी तो इस दिल-ए-शोरीदः की भी दाद मिले कि एक 'शुम्र से हस्रत परस्त-ए-बाली है बजा है, गर न सुने, नालःहा-ए-बुलबुल-ए-ज़ार कि गोश-ए-गुल, नम-ए-शबनम से, पँबः आगीं हैं असद है नश्र में, चल बेवफ़ा, बराय ख़ुदा मकाम-ए-तर्क-ए-हिजाब-यो-विदा -ए-तम्की है २०१ क्यों न हो चश्म-ए-बुताँ मह्व-ए-तग़ाफुल, क्यों न हो यानी इस बीमार को नज़ारे से परहेज है मरते मरते, देखने की प्रारजू रह जायगी वाय नाकामी, कि उस काफ़िर का खंजर तेज है 'पारिज़-ए-गुल देख, रू-ए-यार याद अाया, असद जोशिश-ए-फरल-ए-बहारी इश्तियाक अँगेज़ है २०२ , दिया है दिल अगर उस को, बशर है, क्या कहिये हुअा रक़ीब, तो हो, नामःबर है, क्या कहिये