पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/७०

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लो हम मरीज़-ए-'प्रिश्न के तीमारदार हैं अच्छा अगर न हो, तो मसीहा का क्या 'अिलाज नफ़स न अंजुमन-ए-आरजू से बाहर खेच अगर शराब नहीं , इन्तिजार-ए-साग़र खेंच कमाल-ए-गर्मि-ए-स त्रि-ए-तलाश-ए-दीद न पूछ बरंग-ए-ख़ार मिरे आइने से जौहर खेंच तुझे बहानः-ए-राहत है इन्तिजार, अय दिल किया है किसने इशारः, कि नाज़-ए-बिस्तर खेंच तिरी तरफ़ है ब हसरत नजारः-ए-नरगिस बकोरि-ए-दिल-ओ-चश्म-ए-रकीब, सारार खेच बनीम रामज: अदा कर, हक़-ए-वदी अत-ए-नाज नियाम-ए- पर्दः-ए-जख्म-ए-जिगर से खंजर खेंच मिरे कदह में है सहबा-ए-पातश-ए-पिन्हाँ बरू-ए-सुफ़रा, कबाब-ए-दिल-ए-समन्दर खेच