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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/७०

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५६

लो हम मरीज़-ए-'अिश्क़ के तीमारदार हैं
अच्छा अगर न हो, तो मसीहा का क्या 'अिलाज

५७


नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खेंच
अगर शराब नहीं, इन्तिज़ार-ए-साग़र खेंच

कमाल-ए-गर्मि-ए-स'अि-ए-तलाश-ए-दीद न पूछ
बरँग-ए-ख़ार मिरे आइने से जौहर खेंच

तुझे बहानः-ए-राहत है इन्तिज़ार, अय दिल
किया है किसने इशारः, कि नाज़-ए-बिस्तर खेंच

तिरी तरफ़ है ब हसरत नज़ारः-ए-नरगिस
बकोरि-ए-दिल-ओ-चश्म-ए-रक़ीब, साग़र खेंच

बनीम ग़मज: अदा कर, हक़-ए-वदी'अत-ए-नाज़
नियाम-ए-पर्दः-ए-ज़ख्म-ए-जिगर से ख़ंजर खेंच

मिरे क़दह में है सहबा-ए-आतश-ए-पिन्हाँ
बरू-ए-सुफ़रा, कबाब-ए-दिल-ए-समन्दर खेंच