पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/९०

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शर्मिन्दः रखते हैं मुझे बाद-ए-बहार से मीना-ए-बे शराब-ओ-दिल-ए-बे हवा - ए-गुल सतवत से तेरे जल्वः-ए-हुस्न-ए-ग़यूर की यूँ है मिरी निगाह में रंग-ए-अदा-ए-गुल तेरे ही जल्वे का है यह धोका, कि आज तक बेइख्तियार दौड़े है गुल दर क़फ़ा-ए-गुल ग़ालिब, मुझे है उससे हम आगोशी आरजू जिसका ख़याल है गुल-ए-जैब-ए-क़बा-ए-गुल ग़म नहीं होता है आजादों को, बेश अज़ यक नफ़स बर्क से करते हैं रौशन, शम् अ-ए-मातम खानः हम मफ़िलें बरहम करे है, गँजफ़: बाज़-ए-ख़याल हैं वरक गर्दानि-ए-नैरँग-ए-यक बुतखान: हम बावुजूद-ए-यक जहाँ, हँगामः पैदाई नहीं हैं चरागान-ए-शबिस्तान-ए-दिल - ए-परवानः हम जो फ़ से है, ने कनाअत से, यह तर्क-ए-जुस्तुजू हैं वबाल-ए-तक्यः गाह-ए-हिम्मत-ए-मर्दानः हम