पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- मेहरबाँ होके बुलालो मुझे , चाहो जिस वक़्त मैं गया वक़्त नहीं हूँ, कि फिर आ भी न सकूँ जो फ़ में, ता'न:-ए-अरायार का शिक्या क्या है बात कुछ सर तो नहीं है, कि उठा भी न सकूँ जहर मिलता ही नहीं मुझको, सितमगर वनः क्या कसम है तिरे मिलने की, कि खा भी न सकूँ हमसे खुल जाओ, बवक़्त-ए- मै परस्ती, एक दिन वनः हम छेड़ेंगे, रखकर 'ग्रुज्र-ए- मस्ती एक दिन गरः-ए-ौज-ए-बिना-ए- 'पालम-ए-इम्काँ न हो इस बलन्दी के नसीबों में है पस्ती, एक दिन कर्ज की पीते थे मै, लेकिन समझते थे, कि हाँ रँग लायेगी हमारी फाकः मस्ती, एक दिन नरमःहा-ए - ग़म को भी, अय दिल रानीमत जानिये बेसदा हो जायगा, यह साज-ए-हस्ती, एक दिन