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एक महान् वकील

जो लोग यह जानने का प्रयत्न कर रहे हैं कि वर्तमान समय में राष्ट्रीय पूर्णता सर्वसाधारण की शिक्षा की कितनी आश्रित है उन्हें श्रीयुत फिशर के कुछ अंश कानूनी दलील के समान प्रतीत होंगे। १० अगस्त १९१७ ई॰ को जब इँगलेंड विश्वव्यापी भयङ्कर युद्ध में फंसा हुआ था, श्रीयुत फिशर ने शिक्षा-विषयक एक नया बिल उपस्थित करते हुए इस प्रश्न की कुछ दशाओं पर इस प्रकार विचार किया था:—

"शिक्षा और स्वास्थ्य में कितना घनिष्ठ सम्बन्ध है, इस बात की और दिन दिन अधिकाधिक ध्यान दिया जा रहा है। हमारे सामाजिक इतिहास की एक महान् तिथि वह है जिस दिन १९०७ ई॰ में बालकों का स्वास्थ्य देखने के लिए स्कूल मेडिकल सरविस की स्थापना हुई थी। अब हम जानते हैं, जो कि अन्य उपाय से हम कदापि नहीं जान सकते थे, कि बालकों की एक बहुत बड़ी संख्या की स्वास्थ्य सम्बन्धी दशा बहुत गिरी होने से, हमारी शिक्षण-पद्धति का मूल्य किस प्रकार घट रहा है और गरीबों के बच्चों का शारीरिक स्वास्थ्य कितना ऊँचा उठाने की आवश्यकता है; यदि हम चाहते हैं कि हमारी शिक्षण-पद्धति पर व्यय किया गया अधिकांश धन व्यर्थ न जाय।"

श्रीयुत फिशर को युद्ध से जो शिक्षायें मिली उनमें से एक स्पष्ट शिक्षा यह भी थी कि शिक्षा से राष्ट्रीय योग्यता की कैसी उन्नति होती है। ब्रैडफोर्ड में व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा था:—

"भाइयो और बहिनो, क्या कभी आपने विचार किया है कि इस महाभयङ्कर युद्ध की गति पर शिक्षा का क्या आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा है। वे देश कितनी अच्छी तरह सफल हुए हैं जिनके पास आधुनिक शिक्षा की यथेष्ट सामग्री थी। और वे देश कितना कम सफल हुए हैं जो प्रचलित शिक्षा में औरों की अपेक्षा बहुत पीछे थे। मैं सोचता हूँ कि ऐसा युद्ध पहले कभी नहीं हुआ जिसमें लड़नेवाली सेना इतनी अच्छी तरह शिक्षित रही हों या जिसमें लड़नेवाली सेनाएँ विज्ञान और शिक्षा की इतनी कृतज्ञ हुई हों। चाहे आप आगे के अफ़सरों से जाकर पूछिए—जो आपसे बतलायेंगे कि वे सुशिक्षित प्राइवेट व्यक्तियों को भी कितना महत्त्व देते हैं—चाहे प्रधान कार्य्यालय में जाकर पूछिए, चाहे गोला-बारूद के कारखानों से और रसद के प्रबन्धकों से पूछिए आपको सर्वत्र अपने प्रश्न का एक ही उत्तर