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दुखी भारत


में श्रीयुत ऋची की पञ्जाब-सम्बन्धी रिपोर्ट का एक पैराग्राफ़ उद्धृत किया है। उसने बड़ी बुद्धिमत्ता से दूसरे प्रान्तों ने इस सम्बन्ध में जो उन्नति की है उसका वर्णन करना छोड़ दिया है और उन्नति शीघ्रता के साथ क्यों नहीं हुई इसके कारणों को भी छोड़ दिया है। उदाहरण के लिए १९५ पैराग्राफ में श्रीयुत्त ऋची लिखते हैं:—

"१९२० के एक्ट के अनुसार बम्बई नगर के कुछ वार्डों में आरम्भिक शिक्षा अनिवार्य्य कर दी गई है। इससे पाठशालाओं, छात्रों और अध्यापकों की संख्या में पचास सैकड़ा की वृद्धि हुई है। इसी क्रम से साधारण निरीक्षक और स्वास्थ्य निरीक्षक भी बड़े हैं और एक विशेषता यह हुई है कि निरीक्षिकाएँ भी नियुक्त की गई हैं। म्यूनिसिपैल्टी का शिक्षा-सम्बन्धी व्यय ३५० सैकड़ा बढ़ गया है।"

मिस मेयो ने अपनी पुस्तक के १७६ पृष्ठ पर पञ्जाब कौंसिल के हिन्दू सदस्यों के सम्बन्ध में लिखा है कि उन्होंने अछूतों अर्थात् दलित जातियों को स्कूलों में भर्ती न होने देने का उद्योग किया था। उसका यह लिखना सर्वथा असत्य है। पञ्जाब कौंसिल की १९२२-२३ की कार्रवाई से लिये गये निम्नलिखित प्रश्नोत्तरों से ज्ञात होगा कि दलित जातियों के उद्धार के सम्बन्ध में हिन्दू सदस्यों ने कितनी तत्परता प्रकट की थी:—

प्रश्न २२११ लाला आत्माराम ने प्रश्न किया कि (क) क्या सरकार इस बात की जांच करने की कृपा करेगी कि दलित जातियों की शिक्षा-सम्बन्धी स्थिति सुधारने के लिए अन्य प्रान्तीय सरकारों द्वारा क्या यत्न किया जा रहा है?

(ख) क्या सरकार पञ्जाब की प्रारम्भिक और माध्यमिक शिक्षा-सम्बन्धी स्थिति सुधारने के लिए विशेष छात्रवृत्तियाँ आदि देने के प्रश्न पर विचार करने की कृपा करेगी?

इसके उत्तर में सरकार के शिक्षामन्त्री माननीय खाँ बहादुर मियाँ फज़लहुसेन ने कहा:—

(क) इस सम्बन्ध में अन्य प्रान्तीय सरकारों से पूछताछ की गई है। उनके उत्तरों की प्रतीक्षा की जा रही है।