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अनिवार्य्य आरम्भिक शिक्षा का इतिहास

(ख) दलित जातियों की शिक्षा का प्रश्न पहले ही से सरकार का ध्यान आकर्षिक कर रहा है। और इसे प्रोत्साहन देने के लिए दो बातें की भी जा चुकी है। मोगा में दलित जातियों के लिए ट्रेनिङ्ग क्लास को स्वीकृति और सहायता दी गई है। और सहायता के नये कानूनों के अनुसार जो निजी पाठशालायें ट्रेन्ड शिक्षक रखें उन्हें आर्थिक सहायता दी जा सकती है। सरकार ने यह सिद्धान्त निर्धारित कर दिया है कि अनिवार्य शिक्षा के लिए वह जो धन व्यय करेगी वह सब जातियों के लिए होगा उससे कोई वञ्चित नहीं रहेगा पर यह निश्चित करना म्यूनिसिपल और जिला बोर्डों आदि का काम है कि दलित जातियों के लिए शिक्षा की व्यवस्था किस प्रकार की जाय; पृथक पाठशालाओं में या उन्हीं पाठशालाओं में जो सब के लिए हैं। कोई कठोर नियम बनाने की सरकार की इच्छा नहीं है।

१९२२ ईसवी में ही (सुधरी हुई कौंसिलों ने १९२१ से कार्य करना प्रारम्भ किया था) श्रीयुत के॰ एल॰ रलिया राम ने यह प्रस्ताव उपस्थित किया था कि सरकार दलित जातियों की शिक्षा के लिए ५० लाख रुपया पृथक कर दे। एक संशाधन उपस्थित किया गया कि यह धन घटा कर तीन लाख कर दिया जाय। कौंसिल के दो हिन्दू मेम्बरों ने अर्थात् रावबहादुर लेफ़्टीनेंट बलवीरसिंह और श्रीयुत मोतीलाल कायस्थ ने इस संशोधन का विरोध और मूल प्रस्ताव का समर्थन किया। सरकार की ओर से इस प्रस्ताव का विरोध किया गया पर संशोधन इसलिए वापस ले लिया गया कि सरकार ने विश्वास दिलाया कि वह इस पर अवश्य ध्यान देगी। १९२३ ईसवी में फिर एक हिन्दू मेम्बर ने निम्नलिखित प्रश्न किये थे:—

प्रश्न २७२१। राय साहब लाला ठाकुरदास ने प्रश्न किया कि क्या सरकार यह बतलाने की कृपा करेगी कि:— "(क) पहली जनवरी १९२१ से अब तक दलित जातियों की शिक्षा के लिए क्या किया गया?

"(ख) इस सम्बन्ध में पहली जनवरी १९२१ से अब तक कितना धन व्यय हुआ। और वर्तमान फाइनैंनसियल वर्ष के शेष भाग में कितना व्यय करने का निश्चय किया गया है?

"(ग) अब तक क्या क्या सफलताएँ प्राप्त हुई हैं?