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दुखी भारत

"माननीय खां बहादुर सर फज़लहुसेन ने इसके उत्तर में कहा-'यह आशा की जाती है कि हमारे सम्माननीय सदस्य महाशय जो जानना चाहते हैं वह एक विज्ञप्ति से ज्ञात हो जायगा। मेज़ पर उस विज्ञप्ति की नक़ल मौजूद है।"

उपरोक प्रश्नोत्तर में जिस विज्ञप्ति का उल्लेख किया गया है उसका अन्तिम पैराग्राफ़ उद्धृत करने योग्य है:—

"यहाँ पर मन्त्री उन ज़िला और म्यूनिसिपल बोर्डों तथा लोकोपयोगी संस्थानों की प्रशंसा करना चाहता है जिन्होंने दलित जातियों और समाजों के लिए प्रयत्न किये हैं। और वह इस विकट आर्थिक कठिनाई के समय में भी उनको अधिक से अधिक जो सहायता और प्रोत्साहन दे सकता है, देने को चिन्तित है इस महान कार्य्य में उसका जनता के सहयोग पर अधिक विश्वास है। और इससे भी अधिक विश्वास है समाज की अपनी सहायता अपने आप करने की अभिलाषा पर। प्रान्त कुछ भागों में जनता की यह अभिलाषा प्रकट भी हुई है। इसलिए उसका विश्वास है कि गत कुछ वर्षों में जो सफलता प्राप्त हुई है वह निकट भविष्य में जो बहुत बड़ी उन्नति होनेवाली है उसकी भूमिका मात्र है। और उसका यह भी विश्वास है कि पञ्जाब अपने बीच से निरक्षरता और अज्ञान मिटाने में, तथा दलित जातियों और अन्य उत्तम परिस्थिति में जीवन व्यतीत करनेवाली जातियों के बीच जो दीवाल खड़ी हो गई है उसका तोड़ने में इस अवसर से लाभ उठाएगा और नेतृत्व ग्रहण करेगा।

यह केवल एक प्रान्त सम्बन्ध में लिखा गया है। दलित जातियों को उठाने और शिक्षित करने के लिए अन्य प्रान्तों में भी प्रमुख और समझदार हिन्दुओं द्वारा इसी प्रकार के प्रयत्न हुए हैं। फिर भी मिस मेयो जानबूझ कर यह सिद्ध करना चाहती है कि हिन्दू इसके विरोधी हैं। मैं स्वयं कार्य्य में लगा हुआ हूँ और यह कह सकता हूँ कि १९२० ई॰ में अमरीका से वापस लौटने पर मैंने और मेरे साथ काम करनेवालों ने इस कार्य्य में लाखों रुपये व्यय किये हैं। मैंने यह कार्य १९१० में ही आरम्भ कर दिया था और स्वयं अपनी जेब से बहुत सा धन व्यय किया था।