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दुखी भारत

मिस मेयो द्वारा वर्णित भारतीय शिक्षा-कथा का क्या तात्पर्य्य है इसका पता हमें उसके दो परस्पर-विरोधी दृष्टान्तों द्वारा लग जाता है। पहले दृष्टान्त में जो उसकी पुस्तक के 'एक महान वकील' नामक अध्याय में मिलता है हमारे सामने एक अज्ञात पर 'सम्माननीय उच्च हिन्दू' उपस्थित किया गया है जिस पर मिस मेयो ने यह दोष लगाया है कि वकालत में ख़ूब उन्नति करने पर भी वह अपने 'रोग, गन्दगी और अज्ञानता से भरे' गाँव की कोई परवाह नहीं करता। इसके विपरीत हमारे सामने पञ्जाब का एक 'मुसलमान ज़मींदार' उपस्थित किया गया है जिसके सम्बन्ध में यह कहा गया है कि उसने अपने गाँव के किसानों के लिए बहुत कुछ किया है। परन्तु यह बात निश्चय के साथ कही जा सकती है कि इस मुसलमान जमींदार में मिस मेयो का कृपापात्र होने की मुख्य योग्यता यही है कि यह 'भारतवासियों को सार्वजनिक नौकरियों में शीघ्रता(!) के साथ भर्ती करने की सरकार की नई नीति का घोर विरोध करता है,' और 'स्वराज्य-सम्बन्धी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं लेता।' मिस मेयो का भारत-यात्रा करने और मदर इंडिया नामक पुस्तक लिखने का सम्पूर्ण उद्देश एक बार फिर हमारे सामने आ जाता है जब हम इन परस्पर-विरोधी दृष्टान्तों के बाद ही उसकी पुस्तक में ब्रिटिश डिप्टी कमिश्नर की निम्नलिखित प्रशंसा पढ़ते हैं:—

"परन्तु केवल अँगरेज़ ही एक ऐसा व्यक्ति है जिससे भारत का वर्तमान ग्रामवासी सहानुभूति और अपनी अनेक आवश्यकताओं में स्थायी और व्यावहारिक सहायता की आशा कर सकता है। केवल अँगरेज़ डिप्टी जिला कमिश्नर ही, और कोई नहीं, गाँववालों का माँ-बाप है। और उस डिप्टी ज़िला कमिश्नर के ही सिर पर उनके दुःख और सुख की चिन्ता रात-दिन सवार रहती है।"