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दुखी भारत


नहीं कहलाते थे और कठिनता से मानव प्राणियों में उनकी गणना होती थी। सरकारी कागजों में उनका उल्लेख पशुओं के समान 'कोरी' शब्द द्वारा किया जाता था। और पशुओं की गणना करने में 'इप्पिकी', 'निहिकी', 'सम्बिकी', जिन विचित्र संख्यावाचक शब्दों का प्रयोग किया जाता था वही शब्द उनकी गणना करने में भी व्यवहृत होते थे। आज दिन भी उनका उल्लेख साधारणतया मनुष्य-वाचक (हितो) शब्द से नहीं वरन् वस्तुवाचक (मोनो) शब्द ले किया जाता है.....अँगरेज़ी के पाठक उन्हें (मुख्यतः मिस्टर मिटफोर्ड की अद्वितीय पुस्तक 'प्राचीन जापान की कथाएँ' द्वारा) 'इटा' नाम से जानते हैं। परन्तु उनके भिन्न भिन्न कारणों के अनुसार उनके भिन्न भिन्न नाम भी होते थे। वे लोग चाण्डाल थे।" हम सुनते हैं कि "इटा लोग शहरों के बाहर अपनी पृथक बस्ती बसाकर रहते थे। वे नगर में अपनी वस्तुएँ बेचने या खरीदारी करने के निमित्त आ सकते थे। परन्तु जूतों की दूकान के अतिरिक्त अन्य किसी भी दूकान में उनका प्रवेश वजित था। उनमें से जो गायक का पेशा करते थे उनके साथ कुछ रियायत हो जाती थी। परन्तु उन्हें किसी के घर में प्रवेश करने की आज्ञा नहीं मिलती थी। इसलिए वे केवल सड़कों पर बाग़ों में गा बजा सकते थे। अपने वंशपरंपरा से चले आते हुए कार्य्यों के अतिरिक्त और कोई कार्य करने की उन्हें बिलकुल आज्ञा नहीं थी। छोटी से छोटी व्यापारिक जातियों में और 'इटा' में उतना ही अलंध्य अन्तर था जितना भारतवर्ष में वर्ण-व्यवस्था ने उत्पन्न कर रखा है। 'इटा' लोगों की बस्तियाँ जापानी शहर के शेष भाग से सामाजिक विरोध के द्वारा जितनी पृथक् रहती थीं उतनी पृथक् किसी योरपीय शहर की यहूदियों की बस्तियाँ बड़ी बड़ी दीवालों और फाटकों के द्वारा भी नहीं हो पाती थीं। किसी सरकारी कार्य्य से जाने के लिए विवश न किया जाय तो कोई जापानी इटा की बस्तियों में जाने का कभी स्वप्न में भी खपाल नहीं कर सकता।"

'इटा' और इनके पश्चात् चाण्डाल लोग 'हिनिन' नाम से पुकारे जाते थे। जिसका यह अर्थ था कि वे 'मनुष्य नहीं हैं'। भिखारी-पेशावाले, गवैये, स्वाँग भरनेवाले, वेश्याओं की कतिपय श्रेणियाँ और समाज से बहिष्कृत लोग भी इन्हीं में सम्मिलित किये जाते थे। 'हिनिन' लोगों का अपना पृथक राजा होता था और उनके कानून भी पृथक होते थे। जापानी समाज से बहिष्कृत किया हुआ कोई भी व्यक्ति 'हिनिन' में मिल सकता था। परन्तु वह शेष मनुष्यता से सदा के लिए विदा ले लेने के तुल्य होता था।'