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हिन्दू-वर्णाश्रम-धर्म

इसके लिए केवल राजनैतिक दृष्टि से स्वतन्त्र भारत से ही आशा की जा सकती है; क्योंकि उसमें उन्नतशील जातीय जीवन के अङ्ग नये सुधार करने के लिए उतने ही स्वतन्त्र रहेंगे जितने कि वे जापान में थे और हैं। जब तक वह दिन ना आवे हमें सारे दोषों पर विजय प्राप्त करने का यथाशक्ति अधिक से अधिक उद्योग करते रहना चाहिए। परन्तु प्रत्येक क्षण हम यह जानते रहते हैं कि हमारे उद्योगों के अनुसार हमें फल की प्राप्ति नहीं हो सकती।