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दुखी भारत


गणना के अनुसार ब्रिटिश भारत में गोरे, ऐंग्लो इंडियन और भारतीय ईसाइयों की सम्मिलित संख्या ४७,५४,०६४ थी। इनमें लगभग ३० लाख तो केवल मद्रास प्रान्त और दक्षिणी राज्यों में मिलाकर थे। सम्पूर्ण भारत में रोमन कैथलिक सम्प्रदायवालों की संख्या १८,२३,०७९ थी। इनके अतिरिक्त एक बड़ी संख्या 'सीरियन' ईसाइयों की और अन्य ईसाई सम्प्रदायों की है जो कि जाति-बन्धन से बँधे हुए हैं। दक्षिण भारत में रोमन कैथलिक सम्प्रदाय के गिर्जों में ईसाइयों की भिन्न भिन्न जातियों के बैठने के लिए विशेष स्थान नियुक्त कर दिये जाते हैं।

दलितोद्धार के सम्बन्ध में सहानुभूति और उत्साह प्रदर्शित करने के लिए मिस मेयो ने ब्रिटिश सरकार पर बधाइयों की जो वृष्टि की है वह वास्तविकता से और भी दूर है। मिस मेयो यह सिद्ध करना चाहती है कि अब जो उच्च जाति के हिन्दू अपनी नीची जाति के भाइयों की उद्धार की चिन्ता प्रदर्शित कर रहे हैं उसका कारण मानवीय सद्भाव इतना नहीं है जितना उनका यह विचार कि अछूतों की उपेक्षा करने से उनका समाज राजनैतिक ख़तरे में पड़ जायगा। परन्तु यदि राजनैतिक उद्देश्य से हिन्दुओं के कतिपय वर्ग प्रेरित हुए भी हैं तो इससे कोई आश्चर्य्य नहीं करना चाहिए क्योंकि नौकरशाही के तो समस्त प्रेम, घृणा और पक्षपात के भाव पूर्णरूप से इन्हीं उद्देशों पर अवलम्बित रहते हैं। नौकरशाही की सहानुभूति के लिए अछूत अभी बिलकुल हाल का आविष्कार है। नौकरशाही को अब यह पता चला है कि भारतवासियों की स्वराज्य की आकांक्षाओं के विरुद्ध अछूत बड़े ही मूल्यवान् हथियार हैं। भारतवर्ष में राष्ट्रवादियों के प्रजातान्त्रिक शासन की माँग के विरुद्ध अछूतों का होना सरकार के लिए एक बड़ा बहाना मिल गया है। उनके नाम पर सरकार व्यवस्थापिका सभाओं में अपने आदमियों के लिए कुछ स्थान सुरक्षित रख सकती है। अछूतों को मताधिकार देना सरकार के लिए ख़तरे की बात हो सकती है। परन्तु स्वार्थसिद्धि के लिए उसे अपनी पैतृक भावना यथेष्ट सुन्दर प्रतीत हो रही है और उस दशा में जब कि अछूतों की ओर उसे व्यवस्थापिका सभाओं में अधिक नामज़द सहायक मिल सकते हैं।

दलित जातियों पर नौकरशाही की कृपा का एक रूप जो प्रकट हुश्रा है वह यह है कि उसने इन जातियों से सम्बन्ध रखनेवाले लोगों की संख्या मनमाने तौर