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दुखी भारत

ब्रिटिश भारत के लिए लगभग ४ करोड २ लाख की संख्या प्राप्त हो जायगी। जिसका यह अर्थ हुआ कि सम्पूर्ण भारत में मिलाकर यह संख्या ५ करोड़ २ लाख होगी। क्या इसी सरल प्रयोग के द्वारा १६२१ ई॰ के मर्दुमशुमारी के अफ़सर ने अछूतों की संख्या निश्चित की है?[१]

भारत-सरकार के वार्षिक कार्य्य-विवरण के सम्पादक श्रीयुत कोटमैन ने अधिक बड़ी संख्या को स्वीकार करके परिस्थिति को सरल कर दिया है। वे सर्वत्र ६ करोड़ अछूतों का उल्लेख करते हैं। मिस मेयो और भी आगे बढ़ती है और केवल ब्रिटिश भारत में ही ६ करोड़ अछूत बतलाती है। सरकारी रिपोर्ट में दिये गये अङ्क ५ करोड़ ३ लाख से ६ करोड़ तक सम्पूर्ण भारत के लिए हैं। इसी में देशी रियासतें भी सम्मिलित हैं। और भी भयङ्कर परिणाम निकालने के लिए मिस मेयो ने इन अङ्कों का बड़ी चतुरता के साथ प्रयोग किया है।

१९१७ ई॰ में अर्थात् सुधार क़ानून के कार्य्यरूप में परिणत, होने से कुछ ही समय पूर्व सरकार को अछूतों का राजनैतिक मूल्य भली भाँति ज्ञात नहीं था। इसलिए उस समय वह उन पर अपनी कृपा का व्यर्थ व्यय भी नहीं कर रही थी।

संयुक्त-प्रान्त में अछूतों की कुल संख्या ८३,७४,५४२ बतलाई गई थी। इनमें से केवल १०,९२४ पढ़ते थे। अर्थात् ८०० में १ स्कूल में था। पञ्जाब में कुल संख्या २१,०७,५९३ बतलाई गई थी। उसमें से केवल ३,४५३ स्कूल में थे। मध्यप्रान्त में कुल संख्या ३० लाख थी। उसमें में केवल २६,६६८ स्कूल में थे। केवल मदरास में अछूतों की जन-संख्या ५६,८६,३४२ थी। इसका लगभग १/२ स्कूलों में था। इन अङ्कों में ईसाई मत ग्रहण करनेवाले अछूत भी सम्मिलित हैं। बङ्गाल में अछूतों की संख्या ६७,४२,९१३ थी। इसमें से करीब ८१,००० पढ़ते थे। बम्बई में कुल संख्या १६,३५,८९६ थी, जिसमें से करीब ३०,५६८ शिक्षा पा रहे थे। बिहार उड़ीसा में इनकी संख्या १२,३६,३०० थी जिसमें से १९,८४१ शिक्षा पा रहे थे। १९१७ ई॰ की सरकारी रिपोर्ट का वह सम्पूर्ण पैराग्राफ़ पढ़ने में बड़ा आनन्द आता है जिसमें अछूत जातियों में शिक्षा-प्रचार के उपायों का विवरण दिया गया है।


  1. उपसंहार में देखिए।