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दुखी भारत

किये गये उद्योगों की गिनती गिनाई है परन्तु यह भी स्वीकार किया है कि फल अभी तक बड़ा निराशाजनक है। पञ्जाब की रिपोर्ट में ४४ पृथक् स्कूलों का और उनमें पड़नेवाले १,०२२ छात्रों का उल्लेख है। और नक़शे से पता चलता है कि सब प्रकार के स्कूलों में मिलाकर ३,४९१ अछूत बालक शिक्षा पा रहे हैं। अछूत जातियों के लिए शिक्षा-प्रचार का आन्दोलन दृढ़ता पकड़ रहा है; मुख्यतः ईसाई मिशन और आर्यसमाज के उद्योगों के द्वारा। बिहार उड़ीसा में अछूतों के ४१ पृथक स्कूल हैं और इन पर तथा इसी प्रकार के अन्य कार्य्यों पर ७,५९० रुपया व्यय किया गया। मध्य-प्रान्त में अछूतों के ४२ स्कूल हैं जिनमें से आधे से अधिक ईसाई प्रचारकों द्वारा चलाये जाते हैं। पर इस प्रकार की शिक्षण-पद्धति को सरकार की ओर से प्रोत्साहन नहीं मिला। क्योंकि उसका यह सिद्धान्त है कि सर्व-साधारण स्कूलों से केवल जाति-भेद के कारण कोई बालक पृथक नहीं किया जा सकता। और पृथक् स्कूलों को प्रोत्साहन देना मानों इस सिद्धान्त को निर्बल करना है। जातिगत विरोध का भाव धीरे धीरे मिटता जा रहा है। और अछूतों के बालक पूर्व की अपेक्षा अब अपमानजनक बर्ताव के भय से सार्वजनिक पाठशालाओं में भर्ती होने से कम सङ्कोच करते हैं। दिल्ली में १६ मिशन स्कूल हैं और १ म्यूनिसिपल स्कूल।"

१९१७ ई॰ से, अर्थात् जब से सरकार ने भारत में राजनैतिक ध्येय के सम्बन्ध में अपनी नीति की घोषणा की तब से दलित जातियों से बहुत कुछ राजनैतिक लाभ उठाया गया है। स्वराज्य आन्दोलन के विरुद्ध ब्रिटिश विरोधियों के हाथ में वे एक अमोघ अस्त्र हैं। भारतवर्ष के सरकारी कर्मचारी ही नहीं किन्तु लन्दन 'टाइम्स' जैसे ब्रिटिश समाचारपत्र भी इन जातियों की पिछड़ी हुई दशा और राष्ट्रवादी भारतीयों के विरुद्ध इनकी 'राजभक्ति प्रदर्शन' का प्रायः प्रयोग करते हैं। विशेष अवसरों पर विशेष प्रदर्शन किये जाते हैं और उनका व्यय केन्द्रीय या प्रान्तीय शासन के अधीन गुप्त और प्रकाशन कोष से दिया जाता है। एक ऐसे ही प्रदर्शन ने मिस मेयो की पुस्तक के एक अध्याय—'दर्शनीय ज्योति' के लिए ख़ूब सामग्री दे दी है और उसी से उसने लगभग ६ पृष्ठ लिख डाले हैं। मिस मेयो ने प्रिन्स आफ़ वेल्स को वह ज्योति बनाया है जिसे अछूत लोग आश्चर्य्य के साथ देखते हैं और मुग्ध हो जाते हैं। अब मिस मेयो की सरस भाषा का प्रयोग देखिए।