पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/१५

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परवशता का कुछ ऐसा शाप होता है कि स्वयं ग़ुलाम जातियाँ भी यह नहीं समझतीं कि स्वराज के योग्य चरित्र गढ़ने तथा स्वतंत्र मनोवृत्ति पैदा करने का एक मात्र उपाय यही है कि इन बेड़ियों को तोड़ डाला जाय और इस शासन के जुएँ को उतार कर फेंक दिया जाय। साम्राज्यवादियों की इस सम्मोहन-विद्या और दास-जातियों के विरुद्ध इस प्रकार सुसंगठित गन्दे प्रचार का ऐसा असर पड़ता है कि वे अपना जकड़ी हुई दशा से बेचैन होने पर भी स्वतन्त्रता से डरती हैं। इस प्रकार झूठे तर्क के वृत्त में यह युद्ध होता रहता है अन्त में बदला लेने की आग चारों तरफ भड़क उठती है और इतिहास में एक नया अध्याय प्रारम्भ होता है।

प्रत्येक विद्यार्थी यह जानता है कि योरोप शताब्दियों तक असभ्यता, मूर्खता और ग़ुलामी का शिकार रहा है। योरोप से हमारा मतलब संसार की सब गोरी जातियों से है। अर्थात् योरोप और अमरीका दोनों। अमरीका तो अभी योरोप का बच्चा ही है। इन गोरी जातियों ने एशिया से अपना धर्म पाया, मिस्र की कला और उद्योग का अनुकरण किया, भारतवर्ष और फ़िलस्तीन से सदाचार-सम्बन्धी आदर्श उधार लिये। संसार की आधुनिक उन्नत-जातियों में इस समय जो कुछ भी वास्तविक ख़ूबी और अच्छाई है वह अधिकांश में उन्हें पूर्व से मिली है। और कुछ लोगों के मत के अनुसार उनका रक्त भी एशिया के ही रक्त से बना है। जिन्होंने थोड़ा बहुत भी इतिहास पढ़ा है वे जानते हैं कि अभी तीन ही सौ वर्ष पहले वर्तमान योरोप के आधे भाग पर एशिया का अधिकार और शासन था। एशिया में ईसाइयों के आगमन से पहले केवल सिकन्दर की ही सेनाएँ ऐसी थीं जिन्हें विजय प्राप्त हुई थी। पर उनका प्रभाव एशिया के एक बहुत छोटे भाग पर पड़ा था। और वह भी थोड़े ही समय तक के लिए। सिकन्दर की चढ़ाई का बदला हूणों, चंगेज़ खाँ, तैमूर और उनके बाद मूर और तुर्कों के हमलों तथा जीतों से खूब अच्छी तरह ले लिया गया। शताब्दियों तक रूस, तुर्की, सिसली, स्पेन और बालकान पर अधिकार करके एशियावालों ने राज्य किया। एशिया पर योरोप का शासन तो अभी दो ही शताब्दियों से है। यह भारत की जीत के साथ आरम्भ हुआ है और ईश्वर ने चाहा तो भारत के स्वाधीन