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अछूत—उनके मित्र और शत्रु

वह उनके आश्चर्य्य को हर्ष में परिणत करती है, हर्ष को मुग्धता में और मुग्धता को उन्माद में।

१९२१ ईसवी में जब युवराज ने भारतवर्ष की यात्रा की तब भारतीय राष्ट्रवादियों ने, उनके सम्मान करने के लिए जितने जलसों और स्वागतों का प्रबन्ध किया गया था, उन सबका बहिष्कार करने की घोषणा कर दी। इसलिए सरकारी कर्मचारियों को टोके जाने योग्य उपायों का सहारा लेना पड़ा। कतिपय स्थानों में उन्होंने गाँव के भोले भाले मनुष्यों को ला खड़ा किया। उनके आने जाने के लिए व्यय का प्रबन्ध किया और जहाँ आवश्यकता पड़ी वहाँ बिना मूल्य भोजन और पोशाक की भी व्यवस्था की। ग्रामवासी तमाशा देखने की इच्छा से आये। जिस राजभक्ति की वाक़यद का मिस मेयो ने वर्णन किया है सम्भवतः वह भी हुई थी। परन्तु युवराज की मुस्कुराहट आदि छोटी मोटी सब बातों का विस्तारपूर्वक वर्णन करने में उसने स्वयं अपनी कल्पना से काम लिया है। और सम्भवतः यह पाठकों पर केवल यह प्रभाव डालने के लिए लिखा कि वे अपने मन में इसे किसी ऐसे व्यक्ति का लिखा वर्णन समझें जिसने सब बातों को स्वयं अपने नेत्रों से देखा हो। किसी प्रकार भी हो, युवराज को देखने पर अछूतों की हार्दिक भावनाओं और उनके उन्मत्त नृत्यों का उसने जो वर्णन किया है वह भारतवासियों को उसकी कल्पना का एक आविष्कार-मात्र प्रतीत होता है।

राजनैतिक प्रचारक के अतिरिक्त और कोई ऐसे कृत्रिम प्रदर्शनों को इतना अधिक महत्त्व नहीं दे सकता, और मिस मेयो निःसन्देह एक राजनैतिक प्रचारिका है। यह बात अस्वीकार नहीं की जा सकती। अछूतों के लिए ब्रिटिश लोगों के कार्य्यों का वर्णन करते समय वह ऐसे ही प्रदर्शनों और मानपत्रों का विशेष उल्लेख करती है। उस अध्याय के सम्पूर्ण प्रवाह से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उसकी कृति के पीछे राजनैतिक स्वार्थ काम कर रहे हैं।

ताहम इस बात को हम अस्वीकार नहीं कर सकते कि अस्पृश्यता की समस्या एक वास्तविक और जीवित समस्या है। और हिन्दू लोग पूरी