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दसवाँ अध्याय
चाण्डाल से भी बदतर

कोई व्यक्ति यह सोच सकता था कि हिन्दुओं में केवल अछूतों की एक जाति होने के कारण अमरीकावासी उन्हें स्वराज्य और प्रजातन्त्र शासन के अयोग्य ठहराने के लिए सबसे पीछे बोलेंगे। भारतवर्ष के साथ अमरीका की तुलना की जाय तो वहाँ 'अछूतों' की संख्या कहीं अधिक उतरेगी और अस्पृश्यता भी वहाँ भारतवर्ष की अपेक्षा कहीं अधिक बड़े रूप में विद्यमान है। परन्तु इन बातों के होते हुए भी अमरीकावासियों ने अपने स्व-शासन के अधिकार का कभी त्याग नहीं किया और अन्य जातियों को कभी इसके लिए टोकने भी नहीं दिया। जब उन्होंने अपनी स्वतंत्रता की प्रसिद्ध घोषणा का प्रकाशन किया तब उनके देश में ग़ुलाम की प्रथा अत्यन्त प्रबल थी। अभी सत्तर वर्ष भी नहीं हुआ जब अमरीका में केवल इसी प्रथा के कारण गृह-युद्ध हुआ था और सैकड़ों सहस्रों प्राण और लाखों डालर उस गृह-युद्ध के भेंट हुए थे। आज दिन भी भारतवर्ष में अछूतों के साथ इतनी निर्दयता का बर्ताव नहीं किया जाता और क़ानून के विरुद्ध उनको इस प्रकार नहीं सताया जाता जिस प्रकार अमरीका के संयुक्त राज्य में हबशियों को निर्दयता के साथ बिना किसी क़ानून के सताया जाता है।

संयुक्त राज्य अमरीका की मैंने दो बार यात्रा की है। दूसरी बार मैं वहाँ लगभग ५ वर्ष के रहा। इस समय के बीच में मेरे केवल ६ मास वहाँ नहीं व्यतीत हुए क्योंकि मैं ६ महीने के लिए जापान चला गया था। मैंने उस देश में चारों तरफ़ दौरे किये और हबशियों की समस्या का विशेष रूप से अध्ययन किया। मार्च १९१६ में मैंने एक पुस्तक समाप्त की थी। उसमें मैंने लिखा[१] था कि 'अमरीका के संयुक्त-राज्य की द्वितीय बार यात्रा करने का मेरा


  1. संयुक्त राज्य अमरीका; एक हिन्दू के अनुभव और अध्ययन। (द्वितीय संस्करण, कलकत्ता, १९१९) पृष्ठ ८८