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दुखी भारत

इसके अतिरिक्त जिन राज्यों में पहले दासता की प्रथा थी उन सबमें 'जिम क्रो के कानूनों का प्रयोग किया जाता है। इन क़ानूनों के अनुसार रेल गाड़ियों में गोरों और हबशियों के पृथक् पृथक् बैठने का प्रबन्ध रहता है। कुछ राज्यों में तो ट्राम गाड़ियों और स्टीमरों में भी यह व्यवस्था की जाती है। रेल की सड़कों पर गोरों और हबशियों के लिए भोजनालय और विश्रामगृह भी पृथक् पृथक् होते हैं। प्रायः गाड़ियों तक का पृथक् पृथक् प्रबन्ध किया जाता है। और सड़कों पर चलनेवाली किराये की गाड़ियों में गौर लोगों को आगे और अगौर लोगों को पीछे बैठने का स्थान दिया जाता है। रेल की यात्रा में कोई हबशी कितना ही धनी क्यों न हो प्रायः उसे सोने के लिए स्थान मिलना असम्भव ही रहता है। और यदि ऐसा यात्री, उदाहरण के लिए मान लीजिए, 'इलीन्वाइस' में ओहियो नदी को पार कर रहा हो तो उसे अपना स्थान खाली करके हबशियों के लिए खास तौर से बने स्थान में जाकर बैठना पड़ता है। प्रायः रेल की कम्पनियां भी गोरे यात्रियों के बैठने आदि के लिए हबशियों की अपेक्षा अच्छा प्रबन्ध करती हैं। यह दूसरी बात है कि किराया दोनों से एक ही लिया जाता है।

किसी दक्षिणी राज्य के सार्वजनिक स्कूलों में हबशियों आदि के बालक गोरों के बालकों के साथ नहीं पढ़ने पाते। कुछ राज्यों में व्यक्तिगत पाठशालाओं के सम्बन्ध में भी यही कानून बर्ता जाता है। एक राज्य में तो अभी हाल ही में यहाँ तक कानून बना दिया है कि जिन स्कूलों में गोरों के बालक पढ़ते हैं। उनमें हबशी अध्यापक न रक्खे जायँ और इसी प्रकार हबशियों के स्कूलों में गोरे अध्यापक न रहने पावें।

कानूनी विशेषताएँ और भेदभाव अधिकांश-रूप में दक्षिणी राज्यों तक ही परिमित हैं परन्तु जातिगत घृणा प्रायः समस्त संयुक्त राज्य में देखने में आती है। हबशियों को होटलों, युवक ईसाई संघों, युवती ईसाई संघों, और थियेटरों में आने से रोका जाता है। और गोरों की कब्रगाहों में वे अपने मुर्दे नहीं गाड़ने पाते। यदि स्थानिक नियम के अनुसार उन्हें इसका अधिकार प्राप्त रहता है तो भी वे ऐसा नहीं करने पाते। खुल्लमखुल्ला नियम भङ्ग किये जाते हैं। जनता के हार्दिक भावों के कारण बेचारे हबशी पृथक गिरजाघरों में