द्वीप'। कलकत्ता के 'स्टेट्समैन' के भूतपूर्व सम्पादक और एक प्रसिद्ध अँगरेज़ पत्रकार श्रीयुत एस॰ के॰ रैटक्लिफ़ जो आज-कल अमरीका में अपने व्याख्यानों और लेखों से ख़ूब प्रसिद्ध हो रहे हैं, न्यूयार्क के 'न्यूरिपब्लिक' नामक अख़बार में 'मदर इंडिया' की समालोचना लिखते हुए एक स्थान पर कहते हैं :––
"दो साल पहले जब मैंने कैथरिन मेयो की फ़िलीपाइन के सम्बन्ध में आन्दोलनकारी पुस्तक पढ़ी थी तभी मुझे यह निश्चय हो गया था कि इसके पश्चात् वह भारतवर्ष में जायगी और दूसरी पुस्तक तैयार करेगी जो ठीक उन्हीं नतीजों को दिखानेवाली होगी जिनको उसने 'भय के द्वीप' में बार बार दोहराया है। यहाँ स्मरण रखना चाहिए कि उस जबरदस्त घोषणा-पुस्तक का विषय यह है कि अमरीका के संयुक्त राज्यों को अपना शासनकारी हाथ इन द्वीप-समूहों पर सदा रखे रहना चाहिए। क्योंकि यदि ऐसा न किया जायगा तो बेचारे फ़िलीपाइनों को उन्हीं के ज़मींदार, वकील और अन्य भक्षक लोग बुरी तरह सताएँगे और उनकी ज़िन्दा खाल खिँचवा लेंगे।"
हमें यह मानने का कारण है कि मिस मेयो की भारत-यात्रा स्वेच्छा से नहीं हुई। और यह कि उसे उन स्वार्थी ब्रिटिश-वादियों ने दबाव डालकर भेजा जो यह सोचते हैं कि भारतवर्ष में स्वराज्य होने से उनको और उनकी जेबों को ख़तरा है। प्रकट रूप से इस बात का हमारे पास कोई ठीक प्रमाण नहीं है। पर प्रबल और ब्यौरेवार गवाहियों का प्रभाव भी नहीं है। श्रीयुत लायनेल कर्टिज़ उन सुधार-वादियों में हैं जो ब्रिटिश साम्राज्य की अखण्डता और बढ़ती से दिलचस्पी रखते हैं। ग्रेट ब्रिटेन के 'गोल-मेज-दल' के के सदस्य हैं। साम्राज्य की समस्याओं में यह दल जी-जान से दिलचस्पी लेता है और इसके सदस्य अपना समय और शक्ति साम्राज्य के भिन्न भिन्न भागों को एक में मिलाने और उन्हें एक दूसरे को अधिक अच्छा समझाने में लगाते हैं। लेकिन जिस साम्राज्य के वे पक्षपाती हैं वह 'कामन वेल्थ आफ़ नेशन्स'––राष्ट्रों का प्रजातन्त्र है। उसमें गोरे अर्थात् ब्रिटिश और उपनिवेशी दोनों मिलकर असली बाशिन्दों को चूसेंगे। कर्टिज़ महाशय १९१६-१७ में उस समय भारतवर्ष में आये थे