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चाण्डाल से भी बदतर


खींचिए।' रस्सी लम्बी थी, पर उसके खींचने में इतने हाथ लगे थे कि उनके लिए वह लम्बी नहीं थी। इस बार वह हवशी पृथ्वी से लगभग ७ फीट की उँचाई तक उठ गया। रस्सी खम्भे से बांध दी गई और उसका शरीर वहीं लटकता हुश्रा छोड़ दिया गया !"

क्राइसिस के लेखों में इसी प्रकार के अनेक हृदय-विदारक वर्णन आये हैं। ऐसे पाशविक अत्याचारों में स्त्रियां भी पीछे नहीं थीं। मिस्टर हर्ड लिखते हैं:-

"मैंने हवशी स्त्रियों को दया की भिक्षा माँगते हुए देखा। वे गिड़गिड़ाकर सतानेवाली गोरी स्त्रियों से प्रार्थना करती थीं कि हमने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा। पर ये गोरी स्त्रियां नीच प्रवृत्ति की थी। वे हँसती थीं और कठोर पुरुषों की भाँति उन पर टूटी पड़ती थीं। बेचारी हरशिनियों के मुंह पर और छाती पर धूसे, पत्थरों और डण्डों से मारती थीं। इनमें से एक स्त्री क्रोधावेश में एक हथियारबन्द नागरिक पर भी टूट पड़ी; क्योंकि वह एक हबशी स्त्री को बचाने की चेष्टा कर रहा था। यह गोरी महिला उस नागरिक की संगीन-युक्त बन्दूक छीनने के लिए उससे मल्ल-युद्ध करने लगी। इसी बीच में अन्य स्त्रियों ने उस शरणागता हबशी नारी पर आक्रमण कर दिया।

"उन स्त्रियों ने एक युवा हबशी नारी पर आक्रमण करते हुए चिल्ला कर कहा-'इसे हम स्त्रियों के हवाले करो।' वह विपत्ति में फँसी युबती जब करने लगी-'क्षमा कीजिए! क्षमा कीजिए! मैंने कोई अपराध नहीं किया।' तदा एक स्त्री ने उसके मुह में झाड़, की घुसेड़ कर उसे चुप कर दिया। दूसरी स्त्री ने उस हबशिन के हाथ पकड़ लिये। बस उसके मुँह पर झाड़ू, की मार पड़ने लगी। सबों ने मिलकर अपने नाखनों से उसके केश नाच लिये और कमर से उसके वस्त्र फाड़ डाले। तब कुछ मनुष्यों ने कहा-'अब हम लोगों को देखना चाहिए कि यह कितनी तेजी से दौड़ सकती है? स्त्रियों ने तब भी उसका पीटना कद नहीं किया है अब उसके मरने में थोड़ी सी कसर रह गई तब उन्होंने उसे छोड़ा। वह बेचारी पागल की भांति चिल्लाती हुई भाग गई।

"इस घटना के कुछ ही देर पश्चात् एक हबशी वृद्धा दो या तीन हथियारबन्द नागरिकों के साथ उसी मार्ग से निकली। ये स्त्रियाँ उस पर भी टूट पड़ी। जब सैनिकों में से एक ने उन्हें रोकने के लिए अपनी बन्दूक साधी तब झाड़ूवाली स्त्री ने दोनों हाथों से उसे पकड़ लिया और बन्दूक को उससे छीनने का प्रयत्न करने लगी। इसी बीच में दूसरी स्त्री ने दूसरे सैनिक के