पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/१७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५६
दुखी भारत


बन्दूक़ दिखाने और कुछ कुछ घायल कर देने पर भी उस वृद्धा को पीट डाला।"

एक स्त्री एक हबशी का 'कलेजा काटना' चाहती थी जो गोली के घाव से चित्त पड़ा था।

जय हबशियों को पीटते पीटते इन हिंसकों का जी भर गया तब उन्होंने इस काम के साथ आग लगाने का काम भी प्रारम्भ कर दिया। हबशियों को अपने घरों में जलते हुए या लपटों से निकलने की चेष्टा करते हुए देखने से हर एक को बड़ा मज़ा आता था। जो लपटों से निकल भी आता था उसे केवल भीड़ के हाथों पिटना पड़ता था। यहाँ भी स्त्रियों का हाथ था। 'जलते हुए घरों से जो हबशी स्त्रियां अपनी जान लेकर भागती थीं उनका के पीछा करती थीं। उनके जलते हुए कपड़ों की आग बुझाने के विचार से नहीं, यदि सम्भव हो तो उनकी पीड़ा को द्विगुणित करने के लिए। वे झुण्ड की झुण्ड चारों तरफ खड़ी थीं। भय और पीड़ा से व्याकुल हबशियों की अन्तिम तड़फन देख देखकर वे हँसती थीं और मुँह बनाती थीं। बेचारे हवशी अपने ही घर में अपना मांस पका चुकने के पश्चात् मरने के लिए घसिट घसिट कर सड़कों पर आते थे। डाक्टर ड्य बोइस और मिस ग्रनिग ने बहुत से लोगों के बयान लिखे जो अस्पताल में थे । जिन घायलों की उन्होंने परीक्षा की उनमें स्त्रियों की भी एक बड़ी संख्या थी। उनमें ७१ वर्ष की नरसिस गरली नामक एक वृद्धा भी थी और ईस्ट सेंट लुइस में ३० वर्ष भटियारिन और धोबिन का काम कर चुकी थी। उसने कहा कि वह मारे भय के अपने घर से तब तक नहीं हिली जब तक जलती हुई दीवालें उसके ऊपर गिर नहीं पड़ी। उसकी बहि भस्म हो गई थीं।

एडवर्ड स्पेंसर नामक एक हबशी मज़दूर जो पूर्वी सेंट लुइस में पाँच वर्ष रह चुका था, अपने ७ बेटों और एक स्त्री को पूर्वी सेंट लुइस के बाहर एक मित्र के यहाँ ले जा रहा था। मार्ग में वह एक गोरे के साथ जा रहा था; यह सोचकर कि वह गोरा उसका मित्र है। परन्तु जब वह इस गोरे के