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चाण्डाल से भी बदतर


के साथ बर्ताव करने में किसी प्रकार का कानूनी या धर्माचरण-सम्बन्धी उत्तरदायित्व नहीं था। पुरुष या स्त्री सबके साथ वे समान बर्ताव करते थे। आज हबशियों की एक बड़ी संख्या अपने पूर्व के स्वामियों के अनीतिपूर्ण और नियम-विरुद्ध बर्तावों का जीवित प्रमाण है। दासता की प्रथा में हबशी अपने आत्म-सम्मान के अत्यन्त नीचे दबाये गये। काली स्त्री प्रायः अधगोरे बच्चे की माता बनने में कहीं अधिक महत्त्व समझती थी। गोरा स्वामी या ओवरसियर काली महिला पर बलात्कार करने में किसी प्रकार के कानूनी सामाजिक, या आत्मिक नियन्त्रण का अनुभव नहीं करता था। डीन मिलर कहते हैं इस देश में हबशी बलिदान के पशु हैं। वे गोरी जातियों के बोझा ढोनेवाले हैं। वे समाज के हीन-अङ्ग है और उन्हें उस निम्नस्थान की समस्त यातनायें भोगनी पड़ती हैं। ये अपनी स्थिति के समस्त दुःखी को सहते हैं और उन्हें उस स्थिति में पाप भी करने पड़ते हैं।'

एक दूसरे स्थान पर यही लेखक लिखता है:-

'इस देश में जितनी जाति के लोग रहते हैं या सैर के लिए आते हैं उन सबकी पाशविक वासनाओं को तृप्त करने के लिए हबशी महिलाएँ विवश की जाती हैं। इस नाम-मात्र की हबशी जाति की नसों में मनुष्य की प्रत्येक जाति या उपजाति का रक्त दौड़ रहा है। यह रक्त सम्मिश्रण समस्त जाति में ही नहीं, भिन्न भिन्न व्यक्तियों में भी पाया जाता है। और इस प्रकार मिश्रित हुआ है कि वह पृथक् नहीं किया जा सकता।'