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दुखी भारत

अब बनैले पशुओं के समान उनका पीछा और शिकार नहीं किया जाता। वे अफ़्रीका के आदिनिवासियों के दर्जे पर आ गये हैं। जिस प्रकार पूर्वी अफ़्रीका में मसाई जाति के लोगों के लिए विशेष भूमि नियत कर दी जाती है और उसमें वे पशुओं की भाँति रख दिये जाते हैं वैसे ही इनके लिए भी प्रबन्ध होगया है। पूर्वी अफ्रीका में जिस प्रकार अत्यन्त उपजाऊ भूमि गोरे दख़ल लेते हैं और रद्दी भूमि वहाँ के आदिनिवासियों को मिलती है उसी प्रकार अमरीका में भी 'रेड इंडियन को ऐसी रद्दी भूमि मिलती है कि जिससे जीवन निर्वाह बड़ी कठिनता के साथ हो सकता है।' (फिर भी गोरों के लिए एक दुःख का कारण उपस्थित हो गया है, क्योंकि इस रद्दी भूमि के भी कुछ भाग ने अपने हृदय में मिट्टी के तेल आदि के खजाने छिपा रक्खे थे और उनसे रेड इंडियन की सम्पत्ति बहुत बढ़ गई है।)

रेड इंडियनों को अस्वास्थ्यकर स्थानों में रखा जाता है। इसलिए उनकी मृत्यु-संख्या गोरों की मृत्यु-संख्या से बहुत अधिक बढ़ गई है। उनमें तपेदिक और नेत्ररोग विशेषरूप से पाये जाते हैं।

रेड इंडियनों की शिक्षा के लिए अमरीका का संयुक्त राज्य धन व्यय कर रहा है।परन्त जिनके हाथ में इस व्यय का अधिकार दिया गया है उनकी रेड इंडियनों के साथ कोई सहानुभूति नहीं है। इससे उचित फल की प्राप्ति नहीं हो रही है। मैंचेस्टर गार्जियन के न्यूयार्क के संवाददाता ने मिस्टर एच॰ एल॰ रसेल-एक रेड इंडियन स्कूल के प्रधान-के पत्र से कुछ प्रमाण हाल ही में उद्धत किये थे। उस पत्र में मिस्टर रसेल ने स्कूलों में रेड इंडियनों के बालकों पर जो पाशविक अत्याचार किया जाता है उसी के सम्बन्ध में लिखा था। संयुक्तराज्य की सिनेट में एक रेड इंडियन की समस्याओं पर विचार करनेवाली कमेटी है उसी के सामने यह पत्र उपस्थित किया गया था। पत्र का कुछ अंश इस प्रकार है।

"मैंने देखा है कि दण्ड देने के लिए रेड इंडियन के बालकों को रात में बिस्तर से बाँध देते हैं। मैंने देखा है कि वे मकानों के नीचे बनी गुफाओं में बन्द कर दिये जाते हैं। इन गुफाओं को छात्रावास का अधिकारी कारागार कहता है। मैंने देखा है कि उनके जूते निकलवा लिये जाते हैं और उन्हें दूध