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दुखी भारत


उसका बैठना ऐसा ही है जैसा तवे का यह कहना कि पतेली काली है। इतने पर भी अमरीका का संयुक्त राज्य संसार में सबसे बढ़कर स्वतन्त्र देश समझा जाता है। निःसन्देह बड़ा स्वतंत्र है! क्योंकि अब भी वर्णनातीत निर्दयता और नृशंसता के साथ निरपराध हबशियों का वध जारी है। कदाचित् 'आधुनिक सभ्यता' के अनुरूप कार्य यही हो।

एँग्लो-इंडियनों का और मिल मेयो का यह कहना है कि वे 'दलित जातियों के मित्र हैं। ब्रिटिशवादियों की तो मुसलमानों के विरुद्ध हिन्दुओं को, अब्राह्मणों के विरुद्ध ब्राह्मणों को, निम्न-जातियों के विरुद्ध उच्च जातियों को दबाने में ही बन पाती है। दलित जातियों के साथ राजनैतिक सहानुभूति प्रदर्शित करने से उनका बड़ा काम निकलता है। परन्तु उनके इन ढोंगों का नैतिक खोखलापन प्रकट हो जाता है जब हम यह स्मरण करते हैं कि संसार में एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक अगौर जातियों के साथ वे क्या बर्ताव कर रहे हैं। साम्राज्य-विस्तार के लिए उन्होंने जो मनुष्य-जाति-विनाशक युद्ध किये उन पर ध्यान न दीजिए तब भी आपके सामने अमृत्सर का हत्याकाण्ड और पेट के बल रेंगाने की आज्ञा मौजूद है। दैनिक जीवन में जहाँ भी 'गौर' तथा 'अगौर' जाति के लोग परस्पर मिलते हैं वहाँ गोरों का उद्धत बर्ताव देखने में आता रहता है। अफ़्रीका में ब्रिटिशवादी यह ढोंग रचते हैं कि वे काफिर जाति के स्वार्थों के संरक्षक हैं। परन्तु ये संरक्षक अपने संरक्षित की स्वतन्त्रता और भूमि दोनों हड़प लेते हैं। संरक्षित श्रम में पिसते हैं और संरक्षक उनके परिश्रम का फल चखते हैं। ये संरक्षक अपने संरक्षितों के साथ, भारत में प्रकृतों के साथ जो बर्ताव किया जाता है उससे भी बुरा, बर्ताव करते हैं। दोनों की बस्तियों में ही अन्तर नहीं है, जीवन के प्रत्येक कार्य में वे एक दूसरे से बहुत दूर रहते हैं। बहुत से स्थानों में गोरों की सड़कों और रेलगाड़ियों का भी उनके अधीन लोग उपयोग नहीं कर सकते। भारतवर्ष में वर्णभेद-संबन्धी घृणा का भाव अब कम हो रहा है परन्तु अब भी ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं जब अत्यन्त सुशिक्षित और उच्च से उच्च श्रेणी के भारतीयों को भी अभिमानी गोरे रेलगाड़ियों में स्थान देना अस्वीकार कर