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चाण्डाल से भी बदतर-समाप्त

यह अध्याय समाप्त करने से पूर्व मैं पाठकों को सावधान कर देना चाहता हूँ कि दे यह न समझे कि मैंने ऊपर जो बातें उपस्थित की हैं, उनका उद्देश्य अस्पृश्यता का समर्थन करना या उसे बहुत कम करके दिखलाना है। मैं अस्पृश्यता का घोर विरोधी हूँ। इसे समर्थन के पूर्ण अयोग्य, अमानुषिक, बर्बर और ऐसी प्रथा समझता हूँ जो हिन्दुओं और हिन्दू-धर्म के सर्वथा अयोग्य है। यह उस संस्कृति पर कलङ्क-स्वरूप है जिसे इसके अतिरिक्त संसार की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति कह सकते हैं। सर्वश्रेष्ठ नहीं तो कम से कम सर्वश्रेष्ठ संस्कृतियों में से एक तो-जिसकी, जाति के समस्त इतिहास में, मानवीय प्रतिमा ने रचना की है-अवश्य समझता हूँ।

कतिपय राज्यों में यहूदी नागरिकों के साथ अब भी जो म्यवहार किया जाता है उसका यहाँ हमने वर्णन नहीं किया। उनके लिए जिन दो अपमानजनक शब्दों-'पोगरोग' और 'घीटो' का प्रयोग किया जाता है उन्हीं का उल्लेख कर देना पर्याप्त है।

हम अपने ऊपर लगाये गये इस अपराध को स्वीकार करते हैं कि हमारी सामाजिकपद्धति अनेक जातियों और उपजातियों के रूप में विकसित हुई। हम इन जाति-बन्धनों के तोड़ने का यथाशक्ति उद्योग कर रहे हैं। परन्तु निःसन्देह हमसे यह कहना गोरों के मुँह का काम नहीं है कि हम 'संसार के लिए भय-स्वरूप हैं-और मनुष्य-जाति के एक भाग को मनुष्य से भी कम समझते हैं। इतिहास इस बात का प्रमाण है कि गोरा-साम्राज्यवाद संसार के लिए सबसे बड़ा खतरा है। और इसका जातिद्वेष केवल इस विचार पर स्थित है कि जो 'गोरे' नहीं हैं वे 'मनुष्य से कम' हैं। इसने विशाल जनसंख्या को राजनैतिक और नागरिकता-बन्धी अधिकारों से वञ्चित कर रक्खा है और यह निर्दयता के साथ उसे अपने अर्थ-साधन के लिए सता रहा है। इसने अनाचार का दौर-दौरा कर दिया है। हाल के ऐसे अनेक कार्यों में पूर्व की रानी देमस्कस पर झांस-द्वारा गोले-बारी का उदाहरण दिया जा सकता है। यदि शीघ्रता और प्रभाव के साथ इसे रोका न गया तो इसमें केवल अगौर जातियों की ही सभ्यता को नहीं, संसार की समस्त सभ्यता को नष्ट कर देने के लक्षण दिखलाई पड़ रहे हैं। १९१४ के विश्वव्यापी युद्ध में लालच और द्वेष से उत्तेजित किया गया इसका एक नमूना हम देख चुके हैं।