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दुखी भारत

गोरी जातियों ने अगौर जातियों के साथ जो दुर्व्यवहार किया है उसकी तुलना में भारतवर्ष के जातीय दुर्व्यवहार क्या ठहरेंगे?

भारतवासियों से यह कहा जाता है कि उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य का अभिमान करना चाहिए; परन्तु साम्राज्य के सब भागों में उनके साथ गुलामों के जैसा बर्ताव किया जाता है। आस्ट्रेलिया, कनाडा और दक्षिणी अफ्रीका में उनको सब प्रकार के अपमानों और असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। गोरों के होटलों, विश्राम-गृहों, और कहवा आदि की दूकानों में उनका प्रवेश वर्जित है।

परन्तु जब हम अफ़्रीका के आदि-निवासियों के प्रति उनके ढोंगी संरक्षकों-गोरों-के व्यवहार पर विचार करते हैं तो हमें ये सब बातें घरेलू प्रतीत होती हैं। उन भयानक और रक्त को शुष्क कर देनेवाले दृश्यों को दिखाने के लिए 'निविंसन' या 'मोरेल' की लेखनी होनी चाहिए। मिस्टर मोरेल ने इस विषय के अध्ययन में अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया है और वे निम्नलिखित परिणाम पर पहुँचने के लिए विवश हुए हैं*[१]

"उसकी भूमि पर गोरों के पक्षपात-पूर्ण अधिकार जो नहीं कर सके, योरप के राजनैतिक प्रभाव के घेरे जो नहीं कर सके, मशीनगनें और बन्द जो नहीं कर सकी, गुलामों के दल, खानों के भीतर के परिश्रम जो नहीं कर सके, चेचक, खसरा, और गर्मी आदि के खरीद कर लाये गये रोग जो नहीं कर सके, और जो समुद्र-पार गुलाम लेजाकर बेचने की प्रथा भी नहीं कर सकी, उसकी सबकी पूर्ति आधुनिक पूंजीवादियों की लूट-खसोट, आधुनिक विनाशक-यन्त्रों की सहायता से, बड़ी सफलता के साथ कर देगी।

"क्योंकि इन पूँजीपतियों की वैज्ञानिक रीति से बलपूर्वक प्रयोग की गई लूट-खसोट से बचने का अफ्रीकावाली के पास कोई उपाय नहीं है। इसके विनाशक प्रभाव सामयिक ही नहीं हैं बल्कि चिरस्थायी भी हैं। इसके स्थायित्व में ही इसके घातक परिणाम भरे हैं। यह केवल शरीर का ही नहीं बल्कि प्रात्मा का भी हनन करती है। यह उत्साह को भङ्ग कर देती है।

  1. * दी ब्लैक मैन्स बर्डन' लन्दन, नैशनल लैबौ प्रेस १९२०, पृष्ठ ७-८।