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चाण्डाल से भी बदतर-समाप्त


समस्त देश उजाड़ हो गया है, पतित हो गया है और मरने के करीब है। आदि-निवासियों के रस्म-रिवाजों पर आवात किया जाता है, तथा उनके अधिकारों की उपेक्षा की जाती है। बड़े बड़े मैदान जो कुछ ही समय पूर्व व्यापारी काफिलों से गुलज़ार हो रहे थे अब शान्त और उजाड़ हो गये हैं। अब उनमें केवल चीटियों के बिलों, सूखी घास और हवा से स्वच्छ किये हुए मागों के रूप में ही जीवन के चिह्न शेष रह गये हैं।"

यदि किसी को मानव-निर्दयता के दिल दहला देनेवाले उदाहरणों का संग्रह करना हो तो उसके लिए सबसे अच्छा उपाय यही है कि वह मोरेल की 'लाल रबर' नामक पुस्तक खोलकर 'कृत्य' शीर्षक अध्याय को पढ़े। मैंने अपने जीवन में जो अत्यन्त भयङ्कर बातें पढ़ी हैं उनमें से कुछ मुझे इसी अध्याय में मिली हैं। मिस्टर मोरेल ने एक अँगरेज यात्री ई॰ जे॰ ग्लेव का वक्तव्य अपनी पुस्तक में इस प्रकार उद्धत किया है*[१]-

"मन्टुम्बा झील से लेकर इकलेम्बा तक सरकार अर्थ-लाम के उद्देश्य से बड़ी कर नीति का प्रयोग कर रही है।...विषुवत रेखा पर स्थित समस्त जिलों में युद्ध हुए हैं, सहस्रों मनुष्य मारे गये हैं और धर-बार नष्ट किये गये हैं।...बहुत से स्त्री और बालक गिरफ्तार किये गये। स्टेनली के जल-प्रपात के पास २४ सिर लाये गये। उनसे कैप्टन रोम ने अपने गृह के सामने की एक फूलों की क्यारी को सजाया।"

मिस्टर मारेल ने कैम्पबेल नामक एक प्रेस वटेरियन ईसाई प्रचारक के खेखों के भी बड़े बड़े अवतरण दिये हैं।†[२] नीचे हम उसी के वक्तव्य से एक उद्धरण देते हैं:-

"चारों और व्यभिचार-वृद्धि और स्त्रियों तथा कन्याओं के निर्लज्जता का जीवन व्यतीत करने के लिए विवश होने के कारण अफ्रीका का गाईस्थ्य जीवन और उसकी पवित्रता को बड़ा आघात पहुँचा है। और इस प्रकार कांगो राज्य में चारों और बीमारियों के जो बीज बोये गये वे अब खूब अच्छी तरह फल-


  1. * लाल रबर लन्दन, नेशनल लेवर प्रेस, १८१६ पृष्ट ४२
  2. † उसी पुस्तक से, पृष्ठ ४४